________________ तृतीय प्रतिपत्ति : सुधर्मासभा का वर्णन] [393 हैं। उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत-सी काले सूत्र में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् सफेद डोरे में पिरोई हुई गोल और लटकती हुई पुष्पमालाओं के समुदाय हैं / वे पुष्पमालाएँ सोने के लम्बूसक (पेन्डल) वाली हैं यावत् सब दिशाओं को सुगन्ध से भरती हुई स्थित हैं। उस सुधर्मासभा में छ हजार गोमाणसियाँ (शय्यारूप स्थान) कही गई हैं, यथा-पूर्व में दो हजार, पश्चिम में दो हजार, दक्षिण में एक हजार और उत्तर में एक हजार / उन गोमाणसियों में बहुत-से सोने-चांदी के फलक हैं, उन फलकों में बहुत से वज्रमय नागदन्तक हैं, उन वज्रमय नागदन्तकों में बहुत से चांदी के सीके हैं / उन रजतमय सींकों में बहुत-सी वैडूर्य रत्न की धूपघटिकाएँ कही गई हैं। वे धूपघटिकाएँ काले अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और लोभान के धूप की नाक और मन को तृप्ति देने वाली सुगन्ध से आसपास के क्षेत्र को भरती हुई स्थित हैं। उस सुधर्मासभा में बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा गया है। यावत् मणियों का स्पर्श, भीतरी छत, पद्मलता आदि के विविध चित्र आदि का वर्णन करना चाहिए / यावत् वह भूमिभाग तपनीय स्वर्ण का है, स्वच्छ है और प्रतिरूप है / 138. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा मणिपीढिया पण्णत्ता / सा णं मणिपीढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सध्वमणिमया। तीसे गं मणिपीढियाए उपि एस्थ णं माणथए णाम चेइयखंभे पण्णत्ते, अद्धटुमाई जोयणाई उखु उच्चत्तेणं अद्धकोसं उन्धेहेणं अद्धकोसं विखंभेणं छकोडीए छलसे छविगहिए वहरामयवट्टलट्ठसंठिए, एवं जहा महिंदज्यस्स बण्णओ जाव पासाईए / तस्स णं माणगस्स चेइयखंभस्स उरि छक्कोसे ओगाहिता हेट्ठावि छक्कोसे वज्जिता मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु एत्थ णं बहवे सुवण्णरुप्पमया फलगा पण्णता / तेसु णं सुवण्णरुप्पमएसु फलगेसु बहवे वइरामया गागदंता पणत्ता / तेसु णं वइरामएसु णागदंतएसु बहथे रययामया सिक्कगा पण्णत्ता। तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वइरामया गोलवट्टसमुग्गका पण्णत्ता; तेसु णं वइरामएसु गोलबट्टसमुग्गएसु बहवे जिणसफहाम्रो सन्निक्खित्ताओ चिट्ठति / जाओ णं विजयस्स देवस्स अण्णेसि च बहणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ बंदणिज्जाओ पूणिज्जानो सक्कारणिज्जाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जानो। माणवगस्स गं चेइयखंभस्स उरि अट्ठमंगलगा नया छत्ताइछत्ता। __ तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पुरच्छिमेणं एत्य गं एगा महामणिपेठिया पण्णता। सा गं मणिपेढिया दो जोयणाई प्रायामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई जाव पडिरूवा। तीसे गं मणिपेढियाए उप्पि एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते / सीहासणवणओ। तस्स णं माणवगस्स चेइयखंभस्स पच्चस्थिमेणं एस्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता, जोयणं आयामविक्खंभेणं अखजोयणं बाहल्लेणं सध्वमणिमई अच्छा। तीसे णं मणिपेढियाए उपि एत्थ णं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते। तस्स णं देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वग्णावासे पण्णसे, तंजहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org