________________ तृतीय प्रतिपत्ति : सिद्धार्थतन-वर्णन] [397 139. (2) तासि णं जिणयपडिमाणं पिदुओ पत्तेयं पत्तेयं छत्तधारपडिमाओ पण्णताओ। ताओ गं छत्तधारपडिमाओ हिमरययकुदुसष्पकासाई सकोरंटमल्लदामधवलाई आतपत्ताई सलोलं ओहारेमाणोओ चिट्ठति। तासि णं जिणपडिमाणं उमओ पासि पत्तेयं पत्तेयं चामरधारपडिमाओ पण्णत्ताओ। ताओ णं चामरधारपडिमाओ चंदप्पहवइरवेरुलियनानामणिकणगरयणविमलमहरिहतपिज्जुज्जलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ संखंककुददगरय-अमयमथिअफेणपुंजसण्णिकासाओ, सुहुमरययवीहवालाओ धवलाओ चामराओ सलोलं ओहारेमाणीओ चिट्ठति। तासि णं जिणपडिमाणं पुरओ दो दो नागपडिमाओ, दो दो जक्खपडिमाओ, दो दो भूतपडिमानो दो दो कुंडधारपडिमाओ (विणयोवणयाओ पायडियाओ पंजलिउडाओ) समिक्खित्ताओ विठंति, सम्वरयणामईओ, अच्छाओ सहामो लण्हाओ घटाओ मट्ठाओ णीरयाओ णिप्पंकाओ जाव प्रतिरुवाओ। तासि णं जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं एवं अट्ठसयं भिगारगाणं, एवं आयंसगाणं थालाणं पातीणं सुपइटुकाणं मणगुलियाणं बातकरगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं हयकंठगाणं जाव उसभकंठगाणं पुष्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं पुप्फपडलगाणं अदुसयं तेलसमुग्गाणं जाव धूवगडुच्छुयाणं सण्णिविखत्तं चिट्ठा / तस्स णं सिद्धायतणस्स उपि बहवे अट्ठमंगलगा नया छत्ताइछत्ता उत्तिमागारा सोलसविहेहि रयणेहि उवसोभिया तंजहा-रयहिं जाव रिहिं / [139] (2) उन जिनप्रतिमानों के पीछे अलग-अलग छत्रधारिणी प्रतिमाएँ कही गई हैं। वे छत्रधारण करने वाली प्रतिमाएँ लीलापूर्वक कोरंट पुष्प की मालानों से युक्त हिम, रजत, कुन्द और - चन्द्र के समान सफेद प्रातपत्रों (छत्रों) को धारण किये हुये खड़ी हैं। उन जिनप्रतिमाओं के दोनों पार्श्वभाग में अलग-अलग चंवर धारण करने वाली प्रतिमाएँ कही गई हैं। वे चामरधारिणी प्रतिमाएँ चन्द्रकान्त मणि, वज्र, वैड्र्य आदि नाना मणिरत्नों व सोने से खचित और निर्मल बहुमूल्य तपनीय स्वर्ण के समान उज्ज्वल और विचित्र दंडों एवं शंख-अंकरन-कंद-जलकण, चांदी एवं क्षीरोदधि को मथने से उत्पन्न फेनपुंज के समान श्वेत,' सूक्ष्म और चांदी के दीर्घ बाल वाले धवल चामरों को लीलापूर्वक धारण करती हुई स्थित हैं। उन जिनप्रतिमानों के आगे दो-दो नाग प्रतिमाएँ, दो-दो यक्ष प्रतिमाएँ, दो-दो भूत प्रतिमाएँ, दो-दो कुण्डधार प्रतिमाएँ (विनययुक्त पादपतित और हाथ जोड़े हुई) रखी हुई हैं / वे सर्वात्मना रत्नमयी हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, सूक्ष्म पुद्गलों से निर्मित हैं, घृष्ट-मृष्ट, नीरजस्क, निष्पंक यावत् प्रतिरूप हैं। उन जिनप्रतिमानों के आगे एक सौ पाठ घंटा, एक सौ पाठ चन्दनकलश, एक सौ आठ कारियां तथा इसी तरह आदर्शक, स्थाल, पात्रियां, सुप्रतिष्ठक, मनोगुलिका, जलशून्य घड़े, चित्र, रत्नकरण्डक, हयकंठक यावत् वृषभकंठक, पुष्पचंगेरियां यावत् लोमहस्तचंगेरियां, पुष्पपटलक, तेल .. तर 1. कोष्टकान्तर्गत. पाठ वृत्ति में नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org