Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [381 [135] (1) हे भगवन् ! विजयदेव की विजया नामक राजधानी कहाँ कही है ? गौतम ! विजयद्वार के पूर्व में तिरछे असंख्य द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जंबूद्वीप' नाम के द्वीप में बारह हजार योजन जाने पर विजयदेव की विजया राजधानी है जो बारह हजार योजन की लम्बी-चौडो है तथा सैतोस हजार नौ सौ अडतालीस योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह विजया राजधानी चारों ओर से एक प्राकार (परकोटे) से घिरी हुई है। वह प्राकार साढ़े सैंतीस योजन ऊँचा है, उसका विष्कंभ (चौड़ाई) मूल में साढे बारह योजन, मध्य में छह योजन एक कोस और ऊपर तीन योजन प्राधा कोस है ; इस तरह वह मूल में विस्तृत है, मध्य में संक्षिप्त है और ऊपर तनु (कम) है। वह बाहर से गोल अन्दर से चौकोन, गाय की पूंछ के आकार का है। वह सर्व स्वर्णमय है स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है। वह प्राकार नाना प्रकार के पांच वर्षों के कपिशीर्षकों (कंगूरों) से सुशोभित है, यथा-कृष्ण यावत् सफेद कंगूरों से / वे कंगूरे लम्बाई में प्राधा कोस, चौड़ाई में पांच सौ धनुष, ऊंचाई में कुछ कम आधा कोस हैं / वे कंगूरे सर्व मणिमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। 135. (2) विजयाए णं रायहाणोए एगमेगाए बाहाए पणुवीसं पणुवीसं दारसयं भवतीति मक्खायं। ते णं दारा बाढि जोयणाई श्रद्धजोयणं च उड्ढे उच्चत्तेणं एक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खमेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणग)भियागा ईहामिय० तहेव जहा विजएदारे जाव तवाणिज्जबालुगपत्थडा सुहफासा सस्सिरीया सरूवा पासाईया 4 / तेसि णं वाराणं उमओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो चंदणकलसपरिवाडीग्रो पण्णत्तानो तहेव माणियग्वं जाव वणमालाओ / तेसि णं दाराणं उभओ पासि दुहओ णिसोहियाए दो-दो पगंठगा पण्णत्ता / ते णं पगंठगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयामविक्खंभेणं पन्नरस जोयणाई अड्ढाइज्जे कोसे बाहल्लेणं पण्णत्ता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि गं पगंढगाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं पासायडिसगा पण्णत्ता। ते णं पासायडिसगा एक्कतीसं जोयणाई कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नरस जोयणाई अड्डाइजो य कोसे आयामविक्खंभेणं सेसं तं चेव जाव समुग्गया णवरं बहुवयणं भाणियव्यं / विजयाए गं रायहाणीए एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कझयाणं जाव अट्ठसयं सेयाणं चउविसाणाणं गागक्रकेऊणं एवामेव सपुष्वावरेणं विजयाए रायहाणीए एगमेगे दारे असोयं असीयं केउसहस्सं भवतीति मक्खायं / विजयाए णं रायहाणीए एगमेगे दारे (तेसि च वाराणं पुरओ) सत्तरस सत्सरस भोमा पण्णत्ता / तेसि गं भोमाणं (भूमिभागा) उल्लोया (य) पढमलया० भत्तिचित्ता। तेसि णं भोमाणं बहुमजमदेसभाए जे ते नवमनवमा भोमा तेसि णं भोमाणं बहुमज्मदेसभाए 1. जम्बूद्वीप नाम के असंख्यात द्वीप हैं। सबसे प्राभ्यन्तर जंबूद्वीप से यहाँ मतलब नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org