________________ 376] [जीवानीवाभिगमसूत्र मोभासह उज्जोवेइ तावेई पभासेइ, एवामेव ते चित्तरयणकरंडगा पण्णसा वेरुलियपडलपच्चोयाडसाए पभाए ते पएसे सव्वओ समंता ओभासेइ / तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो वो हयकंठगा जाय दो दो उसमकंठगा पण्णता सम्वरयणामया अच्छा जाव पडिलवा / तेसु णं ह्यकंठएसु जाव उसमकंठएसु दो दो पुष्फचंगेरीओ, एवं मल्लगंषचण्णवस्थाभरणचंगेरीओ सिद्धत्थचंगेरीओ लोमहत्थचंगेरीओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाय पडिरूवाओ। तेसिं गं तोरणाणं पुरओ दो दो पुष्फपडलाइं जाव लोमहत्थपडलाइं सव्वरयणामयाई जाव पडिरूवाई। तेसि णं तोरणाणं पुरमओ दो दो सोहासणाई पण्णत्ताई। तेसि गं सोहासणाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते तहेव जाव पासाईया 4 // तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो रुप्पच्छदा छत्ता पणत्ता, ते णं छत्ता वेरुलियभिसंतविमलदंडा जंबूणयकनिका बइरसंधी मुत्ताजालपरिगया अट्ठसहस्सवरकंचणसलागा बद्दरमलयसुगंधी सम्वोउअसुरभिसीयलच्छाया मंगलभत्तिचित्ता चंदागारोवमा वट्टा। तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो चामराओ पण्णत्ताओ। ताओ णं चामराओ' चंदप्यमवरवेलिय-नानामणिरयणखचियदंडाओ संखक-कुद-दगरय-अमयमहिय-फेणपुज-सण्णिकासाओ सुहुमरययदीहबालाओ सध्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ। तेसि गं तोरणाणं पुरओ दो दो तिल्लसमुग्गा कोढसमुग्गा पत्तसमुग्गा चोयसमुग्गा तयरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलयसमुग्गा मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सम्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। [131] (2) उन तोरणों के आगे दो-दो सुप्रतिष्ठक (शृगारदान) कहे गये हैं। वे सुप्रतिष्ठक नाना प्रकार के पांच वर्षों की प्रसाधन-सामग्री और सर्व औषधियों से परिपूर्ण लगते हैं, वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिका (पीठिका) कही गई हैं। उन मनोगुलिकानों में बहुत-से सोने-चांदी के फलक (पटिये) हैं। उन सोने-चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक (खूटियाँ) हैं। ये नागदंतक मुक्ताजाल के अन्दर लटकती हुई मालाओं से युक्त हैं यावत् हाथी के दांत के समान कही गई हैं। उन वज्रमय नागदंतकों में बहुत से चांदी के सींके कहे गये हैं। उन चांदी के सींकों में बहत से वातकरक (जलशून्य घड़े) हैं। ये जलशून्य घड़े काले सूत्र के बने हए ढक्कन से यावत् सफेद सूत्र के बने हुए ढक्कन से आच्छादित हैं। ये सब वैडूर्यमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं। 1. णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवाणिज्जुज्जल विचित्तदंडामो चिल्लिमानो इति पाठान्तरम् / 2. मनोगुलिकपीठिकति मूलटीकायाम् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org