________________ सृतीय प्रतिपत्ति H जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [369 रत्नमालाओं और छोटी-छोटी घण्टिकाओं (घंघरुनों) से युक्त हैं, आगे के भाग में ये कुछ ऊँचाई लिये हुई हैं। ऊपर के भाग में आगे निकली हुई हैं और अच्छी तरह ठुकी हुई हैं, सर्प के निचले आधे भाग की तरह उनका रूप है अर्थात् अति सरल और दीर्घ हैं, इसलिए सर्प के निचले प्राधे भाग की प्राकृति वाली हैं, सर्वथा वज्ररत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, यावत् प्रतिरूप हैं / हे आयुष्मन् श्रमण ! वे नागदन्तक बड़े बड़े गजदन्त (हाथी के दांत) के समान कहे गये हैं। उन नागदन्तकों में बहुत सी काले डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रही हैं, बहुत सी नीले डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएँ लटक रही हैं, यावत् शुक्ल वर्ण के डोरे में पिरोयी हुई पुष्पमालाएं लटक रही हैं। उन मालाओं में सुवर्ण का लंबूसक (पेन्डल-लटकन) है, आजूबाज वे स्वर्ण के प्रतरक से मण्डित हैं, नाना प्रकार के मणि रत्नों के विविध हार और अर्धहारों से वे मालाओं के समुदाय सुशोभित हैं यावत् वे श्री से अतीव अतीव सुशोभित हो रही हैं। उन नागदंतकों के ऊपर अन्य दो और नागदंतकों की पंक्तियां हैं / वे नागदन्तक मुक्ताजालों के अन्दर लटकती हुई स्वर्ण की मालाओं और गवाक्ष की आकृति की रत्नमालाओं और छोटी छोटी घण्टिकाओं (घुघरुओं) से युक्त हैं यावत् हे आयुष्मन् श्रमण ! वे नागदन्तक बड़े बड़े गजदन्त के समान कहे गये हैं। उन नागदन्तकों में बहुत से रजतमय छींके कहे गये हैं। उन रजतमय छींकों में वैर्यरत्न की धूपघटिकाएँ (धुपनियाँ) हैं / वे धूपघटिकाएँ काले अगर, श्रेष्ठ चीड और लोभान के धप की मघमघाती सुगन्ध के फैलाव से मनोरम हैं, शोभन गंध वाले पदार्थों की गंध जैसी सुगंध उनसे निकल रही है, वे सुगन्ध की गुटिका जैसी प्रतीत होती हैं। वे अपनी उदार (विस्तृत), मनोज्ञ और नाक एवं मन को तृप्ति देने वाली सुगंध से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हुई अतीव सुशोभित हो रही हैं। 129. (3) विजयस्स गं वारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो वो सालभंजियापरिवाडीओ पण्णत्ताओ, ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ गाणागारवसणाओ गाणामल्लपिणद्धिमओ मुट्टिगेज्ममझाओ आमेलगजमलजुयलवट्टिअम्भुण्णयपीणरइयसंठियपओहराओ रतावंगाओ असियकेसीमो मिउविसदपसत्थलक्खणसंवेल्लितग्गसिरयानो, ईसि असोगवरपाववसमुट्ठियाओ वामहत्थगहीयग्गसालाओ ईसि अद्धच्छिकडक्ख विद्धिएहि लसेमाणीओ इव चक्खुल्लोयणलेसाहि अण्णमण्णं खिज्जमाणीओ इव पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाणणामओ चंदविलासिणीमो चंबद्धसमनिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का इव उज्जोएमाणीको 1. किन्हीं प्रतियों में 'रयणमय' पाठ है। तदनुसार रत्नमय छींके हैं / वृत्ति में रजतमय अर्थ किया गया है। 2. वृत्ति के अनुसार सालभंजिकाओं के वर्णन का पाठ इस प्रकार है--ताप्रो णं सालभंजियानो लीलट्ठियात्री सुपयट्रियानो सुप्रलंकियामो णाणाविहरामवसणाप्रो रत्तावंगाओ असियकेसीयो मिउविसयपसत्थलक्खणसंवेल्लियम्गसिरयानो नानामल पिणद्धामो मूट्रिगेज्झमझायो पामेलगजमलवट्टियप्रभुण्णयरइयसंठियपयोहरामो ईसिं असोगवरपायवसमुट्रियायो......" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org