________________ तृतीय प्रतिपत्ति : जम्बूद्वीप के द्वारों की संख्या] [371 उस विजयद्वार के दोनों तरफ दो नैषेधिकानों में दो घंटामों की पंक्तियां कही गई हैं। उन घंटाओं का वर्णनक इस प्रकार है-वे घंटाए सोने की बनी हुई हैं, वज्ररत्न की उनकी लालाएँ-लटकन हैं, अनेक मणियों से बने हुए घंटाओं के पार्श्वभाग हैं, तपे हुए सोने की उनकी सांकलें हैं, घंटा बजाने के लिए खींची जाने वाली रज्जु चांदी की बनी हुई है। इन घंटानों का स्वर प्रोघस्वर है--अर्थात् एक बार बजाने पर बहुत देर तक उनको ध्वनि सुनाई पड़ती है। मेघ के समान गंभीर है, हंस के स्वर के समान मधुर है, ऋोंच पक्षी के स्वर के समान कोमल है, दुन्दुभि के स्वर के तुल्य होने से नन्दिस्वर है, बारह प्रकार के वाद्यों के संघात के स्वर जैसा होने से नन्दिघोष है, सिंह को गर्जना के समान होने से सिंहस्वर है / उन घंटानों का स्वर बड़ा ही प्रिय होने से मंजुस्वर है, उनका निनाद बहुत प्यारा होता है अतएव मंजुघोष है। उन घंटानों का स्वर अत्यन्त श्रेष्ठ है, उनका स्वर और निर्घोष अत्यन्त सुहावना है। वे घंटाएँ अपने उदार, मनोज्ञ एवं कान और मन को तृप्त करने वाले शब्द से आसपास के प्रदेशों को व्याप्त करती हुई अति विशिष्ट शोभा से सम्पत्र हैं। उस विजयद्वार की दोनों ओर नषेधिकारों में दो दो वनमालाओं की कतार है / ये वनमालाएँ अनेक वक्षों और लताओं के किसलयरूप पल्लवों-कोमल कोमल पत्तों से युक्त हैं और भ्रमरों द्वारा भज्यमान कमलों से सुशोभित और सश्रीक हैं। ये वनमालाएँ प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं तथा अपनी उदार, मनोज्ञ और नाक तथा मन को तृप्ति देने वाली गंध से आसपास के प्रदेश को व्याप्त करती हुई अतीव अतीव शोभित होती हुई स्थित हैं / 130. विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसोहियाए दो दो पगंठगा पण्णता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाई आयामविक्खंमेणं दो जोयणाई बाहल्लेणं सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उरि पत्तेयं पत्तेयं पासायडिसगा पण्णता। ते गं, पासायडिसगा चत्तारि जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं अन्भुग्गयमूसियपहसिताविव विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउयविजयवेजयंती पडाग-छत्ताइछत्तकलिया तुगा गगनतलमणुलिहंतसिहरा' जालंतररयणपंजरुम्मिलितव्व मणिकणगथूभियागा वियसियसयपत्तपोंडरीय-तिलक-रयणद्धचंदचित्ता णाणामणिमयदामालंकिया अंतो य बाहिं य सहा तवणिज्जरुइलवालयापत्थडगा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तेसि णं पासायडिसगाणं उल्लोया पउमलया जाव सामलयाभत्तिचित्ता सम्वतवाणिज्जमया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसिं णं पासायडिसगाणं पत्तेयं पत्तेयं अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते से जहाणामए आलिंगपुक्खरे इ वा जाव मणिहि उवसोभिए / मणीण गंधो पण्णो फासो य नेयव्यो। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं मूमिभागाणं बहुमज्मदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपेढियामो 1. 'गगनतलमभिलंघमाणसिहरा' इत्यपि पाठः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org