________________ 366] [जीवाजीवाभिगमसूत्र काली कान्ति वाला है इत्यादि पूर्वोक्त वनखण्ड का वर्णन यहाँ कह लेना चाहिए। केवल यहाँ तृणों और मणियों के शब्द का वर्णन नहीं कहना चाहिए (क्योंकि यहां पद्मवरवेदिका का व्यवधान होने से तथाविध वायु का आघात न होने से शब्द नहीं होता है)। ___ यहां बहुत से वानव्यन्तर देवियां और देव स्थित होते हैं, लेटते हैं, खड़े रहते हैं, बैठते हैं, करवट बदलते हैं, रमण करते हैं, इच्छानुसार क्रियाएँ करते हैं, क्रीडा करते हैं, रतिक्रीड़ा करते हैं और अपने पूर्वभव में किये गये पुराने अच्छे धर्माचरणों का, सुपराक्रान्त तप आदि का और शुभ पुण्यों का, किये गये शुभकर्मों का कल्याणकारी फल-विपाक का अनुभव करते हुए विचरण करते हैं। विवेचन-पूर्व में पद्मवरवेदिका के बाहर के वनखण्ड का वर्णन किया गया था। इस सूत्र में पद्मवरवेदिका के पहले और जगती के ऊपर जो वनखण्ड है उसका उल्लेख किया गया है। जंबूद्वीप के द्वारों की संख्या 128. जंबुद्दीवस्स णं भंते ! दोवस्स कति दारा पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि वारा पण्णता, तं जहा-विजए, वेजयंते, जयंते अपराजिए। [128] हे भगवन् ! जबूद्वीप नामक द्वीप के कितने द्वार हैं ? गौतम ! जंबूद्वीप के चार द्वार हैं, यथा-विजय, वैजयन्त. जयन्त और अपराजित / 129. (1) कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णते? गोयमा ! जंबुद्दीवे वीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरन्ते लवणसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सौताए महाणवीए उपि एत्थ गं नंबुद्दीवस्स दोवस्स विजए गाम दारे पण्णत्ते, अट्ठजोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाई विक्वंमेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेए वरकणयथभियागे ईहामियउसभतुरगनरमगरविहगवालगकिग्णररुरुसरम-चमरकुजर-वणलय-पउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गयवहरवेदियापरिगताभिरामे विज्जाहरनमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चिसहस्समालिणीए स्वगसहस्सकलिए भिसमाणे भिम्भिसमाणे चक्खुल्लोयणलेसे सुहफासे सस्सिरीयस्वे / वण्णो दारस्स तस्सिमो होइ, तंजहा-वरामया जिम्मा रिट्ठामया पतिद्वाणा वेरुलियमया खंभा जायरूवोवचियपवरपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतले, हंसगम्ममए एलए गोमेज्जमए इंदरखोले लोहितक्खमईयो वारचेडीओ जोतिरसामए उत्तरंगे वेलियामया कवाडा बइरामया संघी लोहितक्खमईओ सूईओ गाणामणिमया समुग्गगा बहरामई अग्गलाओ अग्गलपासाया वइरामई आवत्तणपेढिया अंकुत्तरपासाए णिरंतरितघणकवाडे, भित्तीसु चेव मित्तीगुलिया छप्पणणा तिणि होन्ति गोमाणसी, तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलट्ठिय सालभंजिया, वइरामए कूडे रययामए उस्सेहे सक्तवाणिज्जमए उल्लोए णाणामणिरयणजाल पंजरमणिवंसग लोहितक्ख पडिवंसगरययभोम्मे, अंकामया पश्खबाहाओ जोतिरसामया वंसा बंसकवेल्लुगा य रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमई मोहाडणी बइरामई उवरिपुच्छणी सबसेयरययमए छायणे अंकमयकणगडतवणिज्ज-थूभियाए सेए संखतलविमलणिम्मलवषिषण गोखीर फेणरययणिगरप्पगासे तिलग-रयणवचंदचित्ते गाणामाणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org