________________ 364] [जीवाजीवाभिगमसूत्र के मंच हैं, स्फटिक के माले हैं, स्फटिक के महल हैं जो कोई तो ऊंचे हैं, कोई छोटे हैं, कितनेक छोटे किन्तु लंबे हैं, वहाँ बहुत से प्रांदोलक (झूले) हैं, पक्षियों के आन्दोलक (झूले) हैं / ये सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं / / ___ उन उत्पातपर्वतों में यावत् पक्षियों के आन्दोलकों (झूलों) में बहुत से हंसासन (जिस प्रासन के नीचे भाग में हंस का चित्र हो), क्रौंचासन, गरुड़ासन, उन्नतासन, प्रणतासन, दीर्घासन, भद्रासन, पक्ष्यासन, मकरासन, वृषभासन, सिंहासन, पद्मासन और दिशास्वस्तिकासन हैं / ये सब सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, मृदु हैं, स्निग्ध हैं, घृष्ट हैं, मृष्ट हैं, नीरज हैं, निर्मल हैं, निष्पक हैं, अप्रतिहत कान्ति वाले हैं, प्रभामय हैं, किरणों वाले हैं, उद्योत वाले हैं, प्रासादिक हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं / 127. (4) तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे तहि तहिं बहवे आलिघरा मालिघरा कयलिघरा लयागरा अच्छणघरा पेच्छणघरा मज्जणधरगा पसाहणघरगा गम्भघरगा मोहणधरगा सालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा चित्तघरगा गंधवघरगा आयंसघरगा सस्वरयणामया अच्छा सहा जाव पडिरूवा। तेसु णं आलिधरएसु जाव प्रायंसधरएसु बहूइं हंसासणाई जाय दिसासोयत्थियासणाई सव्वरयणामयाइं जाव पडिरूवाई। तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तत्थ देसे तहि तहि बहवे जाइमंडवगा जहियामंडवगा मल्लिया. मंडवगा णवमालियामंडवगा वासंतीमंडवगा दधिवासुयामंडवगा सूरिल्लिमंडवगा, तंबोलीमंडवगा मुद्दियामंडवगा णागलयामंडवगा अतिमुत्तमंडवगा अप्फोयामंडवगा मालुयामंडवगा सामलयामंडवगा णिच्चं कुसुमिया जाय पडिरूवा। तेसु णं जातिमंडबएसु (जाय सामलयामंडवसु) बहवे पुढविसिलापट्टगा पण्णत्ता, तं महा--- हंसासणसंठिया कोंचासणसंठिया गरुलासणसंठिया उण्णयासणसंठिया पणयासणसंठिया दोहासणसंठिया भद्दासणसंठिया पक्खासणसंठिया मगरासणसंठिया उसभासणसंठिया, सीहासणसंठिया पउमासणसंठिया विसासोस्थियासणसंठिया पण्णत्ता / तत्थ बहवे वरसयणासणविसिटसंठाणसंठिया पण्णत्ता समणाउसो! आइण्णग-रूय-बूर-णवणीय-तुलफासा मउया सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तत्य णं बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति णिसीदंति तयटॅति रमंति ललंति कोलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरिक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति / [127] (4) उस वनखण्ड के उन-उन स्थानों और भागों में बहुत से प्रालिघर (पाली नामक वनस्पतिप्रधान घर) हैं, मालिघर (माली नामक वनस्पतिप्रधान घर) हैं, कदलीघर हैं, लताघर हैं, ठहरने के घर (धर्मशालावत्) हैं, नाटकघर हैं, स्नानघर, प्रसाधन (शृगारघर, गर्भगृह (भौंयरा), मोहनधर (वासभवन-रतिक्रीडार्थ धर) हैं, शालागृह (पट्टशाला), जालिप्रधानगृह, फूलप्रधानगृह, चित्रप्रधानगृह, गन्धर्वगृह (गीत-नृत्य के अभ्यास योग्य घर) और प्रादर्शघर (काचप्रधान गृह) हैं / ये सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् बहुत सुन्दर हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org