________________ 362] [जीवाजीनाभिगमसूत्र जोड़े भी इधर-उधर भ्रमण करते रहते हैं। इन जलाशयों में से प्रत्येक जलाशय वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हा है और प्रत्येक जलाशय पद्मवरवेदिका से युक्त है। इन जलाशयों में से कितनेक का पानी पासव जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का वारुणसमुद्र के जल जैसा है, किन्ही का जल दूध जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का जल पी जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का जल इक्षुरस जैसा है, किन्हीं के जल का स्वाद अमृतरस जैसा है और किन्ही का जल स्वभावतः उदकरस जैसा है / ये सब जलाशय प्रसन्नता पैदा करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं / 127. (2) तासि णं खुड्डियाणं वावीणं जाव बिलपंतियाणं तत्थ तत्थ वेसे तहि तहिं जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगा पणत्ता / तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं अयमेयारूवे वण्णाबासे पण्णते, तं जहा-बहरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियमया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा वइरामया संधी लोहितक्खमईप्रो सूईओ गाणामणिमया अवलंबणा अवलंबणबाहाओ। तेसिं गं तिसोपाणपाडवगाणं पुरओ पत्तेयं तोरणा पण्णत्ता। तेणं तोरणा णाणामणिमयखंभेसु उणि विट्ठसणिविट्ठा विविहमुत्तंतरोवइया विविहतारारूयोवचिया ईहामिय-उसम-तुरग-गर-मगरविहग-वालग-किण्णर-हरु-सरभ-चमर-कुजर-बणलय-पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गयवहरवेहयापरिगताभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव प्राच्चिसहस्समालणीया मिसमाणा मिम्भिसमागा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तेसिं गं तोरणाणं उप्पि वहवे अट्ठमंगलगा पण्णता, सोत्थिय-सिरिवच्छ-जंबियावत्तयद्धमाण-भद्दासण-कलस-मच्छ-चप्पणा सम्वरयणामया अच्छा सण्हा जाय पडिरूवा। तेसि गं तोरणाणं उपि किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्मया हारिद्दवापरज्मया सुविकलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपडा वइरवंडा जलयामलगंधीया सुरुवा पासाइया जाव पडिरूवा। तेसि णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता। पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थया जाव सयसहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा / [127] (2) उन छोटी बावड़ियों यावत् कूपों में यहाँ वहाँ उन-उन भागों में बहुत से विशिष्ट स्वरूप वाले त्रिसोपान कहे गये हैं / उन विशिष्ट त्रिसोपानों का वर्णन इस प्रकार हैवज्रमय उनकी नींव है, रिष्टरत्नों के उसके पाये हैं, वैडूर्यरत्न के स्तम्भ हैं, सोने और चांदी के पटिये हैं, वज्रमय उनकी संधियां हैं, लोहिताक्ष रत्नों की सूइयां (कीलें) हैं, नाना मणियों के म्बन हैं (उतरने चढ़ने के लिए प्राजू-बाजू में लगे हुए दण्ड-समान अाधार, जिन्हें पकड़कर चढ़ना-उतरना होता है), नाना मणियों की बनी हुई पालम्बन बाहा हैं (अवलम्बन जिनके सहारे पर रहता है वे दोनों ओर के भीत समान स्थान) उन विशिष्ट त्रिसोपानों के आगे प्रत्येक के तोरण कहे गये हैं। उन तोरणों का वर्णन इस प्रकार है-वे तोरण नाना प्रकार की मणियों के बने हुए हैं। वे तोरण नाना मणियों से बने हुए स्तंभों पर स्थापित हैं, निश्चलरूप से रखे हुए हैं, अनेक प्रकार की रचनामों से युक्त मोती उनके बीच-बीच में लगे हुए हैं, नाना प्रकार के ताराओं से वे तोरण उपचित (सुशोभित) हैं। उन तोरणों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org