________________ ततीय प्रतिपति : वनखण्ड की वावड़ियों आदि का वर्णन] [361 सूत्र में पाये हुए भद्रशाल आदि वनों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है। भद्रशाल आदि चार वन सुमेरु पर्वत पर हैं। इनमें भद्रशालवन मेरु पर्वत की नीचे की भूमि पर है, नन्दनवन मेरु की प्रथम मेखला पर है, दूसरी मेखला पर सौमनसवन है और चूलिका के पार्श्वभाग में चारों तरफ पण्डकवन है / महाहिमवान् हेमवत क्षेत्र की उत्तर दिशा में है। यह उसकी सीमा करने वाला होने से वर्षधर पर्वत कहलाता है। वनखण्ड की वावड़ियों आदि का वर्णन 127. (1) तस्स णं वणसंडस्स तस्य तत्थ देसे तहि तहि बहवे खुड्डा खुड्डियाओ वावीमो पुक्खरिणीओ गुजालियाओ दीहियाओ सराओ सरपंतियाओ सरसरपंतीनो बिलपंतीओ अच्छाओ सहाओ रययामयकूलाओ समतोराओ वइरामयपासाणाओ, तवणिज्जमयतलानो वेरुलियमणिफालियपडल पच्चोयडाओ गवणीयतलाओ सुवण्ण-सुज्झरयय-मणिवालुयाओ सुहोयाराओ सुउत्ताराओ, गाणामणितित्थसुबद्धाओ चउक्कोणाओ समतीराओ, आणुपुथ्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछन्नपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल-कुमुय-णलिण-सुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्तफुल्लकेसरोवइयानो छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाश्रो परिहत्थ भमंतमच्छकच्छम अगसउणमिणपरिचरियाओ पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ताओ अप्पेगइयाओ आसवोदामो अप्पेगइयाओ वारुणोदाओ अप्पेगइयाओ खीरोदाओ अप्पेगइयाओ घओदाओ अप्पेगइयाओ खोदोदाओ अप्पेगइयाओ अमयरससमरसोदामो, अप्पेगइयाओ पगइएउदग (अमय) रसेणं पण्णत्ताओ, पासाइयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ। [127] (1) उस वनखण्ड के मध्य में उस-उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत-सी छोटीछोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल-गोल अथवा कमल वाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह-जगह नहरों वाली दीधिकाएँ हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह-जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियां हैं, अनेक सरसर पंक्तियां (जिन तालाबों में कुएं का पानी नालियों द्वारा लाया जाता है) और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं / वे स्वच्छ हैं, मृदु पुद्गलों से निर्मित हैं। इनके तीर सम हैं, इनके किनारे चांदी के बने हैं, किनारे पर लगे पाषाण वज्रमय हैं / इनका तलभाग तपनीय (स्वर्ण) का बना हुआ है। इनके तटवर्ती अति उन्नत प्रदेश वैडूर्यमणि एवं स्फटिक के बने हैं / मक्खन के समान इनके सुकोमल तल हैं / स्वर्ण और' शुद्ध चांदी की रेत है / ये सब जलाशय सुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण योग्य हैं। नाना प्रकार की मणियों से इनके घाट मजबूत बने हुए हैं / कुएं और बावड़ियां चौकोन हैं। इनका वप्र-जलस्थान क्रमश: नीचे-नीचे गहरा होता है और उनका जल अगाध और शीतल है / इनमें जो पद्मिनी के पत्र, कन्द और पद्मनाल हैं वे जल से ढंके हुए हैं। उनमें बहुत से उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र फूले रहते हैं और पराग से सम्पन्न हैं, ये सब कमल भ्रमरों से परिभुज्यमान हैं अर्थात् भंवरे उनका रसपान करते रहते हैं। ये सब जलाशय स्वच्छ और निर्मल जल से परिपूर्ण हैं / परिहत्थ (बहुत से) मत्स्य और कच्छप इधर-उधर घूमते रहते हैं, अनेक पक्षियों के 1. वृत्ति के अनुसार 'सुझ' का अर्थ रजत विशेष है। 2. 'परिहत्य' अर्थात बहुत सारे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org