________________ 354] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सिलप्पवाले इ का, पवालंकुरे इ वा, लोहितक्खमणी इ वा, लक्खारसए इवा, किमिरागे इ वा, रत्तकंबले इ वा, चीणपिट्ठरासी इ वा, जासुयणकुसुमे इ वा, किसुअकुसुमे इ वा, पारिजायकुसुमे इवा, रत्तप्पले इ वा, रत्तासोगे इ वा, रत्तकणयारे इ वा, रत्तबंधुजीवे इ वा, भवे एयारवे सिया ? ___ नो तिणठे समझें / तेसि णं लोहियगाणं तणाण य मणीण य एत्तो इट्ठयराए चेव जाव वणे णं पण्णत्ते। [126] (4) उन तृणों और मणियों में जो लाल वर्ण के तृण और मणियां हैं, उनका वर्ण इस प्रकार कहा गया है-जैसे खरगोश का रुधिर हो, भेड़ का खून हो, मनुष्य का रक्त हो, सूअर का रुधिर हो, भैंस का रुधिर हो, सद्यःजात इन्द्रगोप (लाल वर्ण का कीड़ा) हो, उदीयमान सूर्य हो, सन्ध्याराग हो, गुंजा का अर्धभाग हो, उत्तम जाति का हिंगुलु हो, शिलाप्रवाल (मूंगा) हो, प्रवालांकुर (नवीन प्रवाल का किशलय) हो, लोहिताक्ष मणि हो, लाख का रस हो, कृमिराग हो, लाल कंबल हो, चीन धान्य का पीसा हुमा पाटा हो, जपा का फूल हो, किंशुक का फूल हो, पारिजात का फूल हो, लाल कमल हो, लाल अशोक हो, लाल कनेर हो, लाल बन्धुजीवक हो, भगवन् ! क्या ऐसा उन तृणों, मणियों का वर्ण है ? गौतम ! यह यथार्थ नहीं है। उन लाल तृणों और मणियों का वर्ण इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर कहा गया है। 126. (5) तत्थ णं जे ते हालिद्दगा तणा य मणी य तेसि णं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते-से जहानामए चंपए इ वा, चंपगच्छल्लो इ वा, चंपगमेए इ वा, हालिद्दा इ घा, हालिद्दमेए इ बा, हालिद्दगुलिया इ वा, हरियाले इ वा हरियालमेए इवा, हरियालगुलिया इ वा, घिउरे इ वा, चिउरंगरागे इ वा, वरकणए इ वा, वरकणगनिघसे इ वा (सुवण्णसिप्पिए इ वा) वरपुरिसवसणे इ वा, सल्लइकुसुमे इ वा, चंपककुसुमे इ वा, कुहुंडियाकुसुमे इ वा, (कोरंटकदामे इ वा) तडउडाकुसुमे इ वा, घोसाडियाकुसुमे इ वा, सुवष्णजूहियाकुसुमे इ वा, सुहरिनयाकुसुमे इ वा (कोरिटवरमल्लदामे इ वा), बीयगकुसुमे इ वा, पीयासोए त्ति वा, पीयकणवीरे इ वा, पीयबंधुजीवए इवा, भवे एयारूबे सिया? नो इणठे समठे। ते णं हालिहा तणा य मणी य एत्तो इट्ठयरा चेव जाव वण्णे णं पण्णता / [126] (5) उन तृणों और मणियों में जो पीले वर्ण के तृण और मणियां हैं उनका वर्ण इस प्रकार का कहा गया है। जैसे सवर्णचम्पक का वक्ष हो, सवर्णचम्पक की छाल हो, सुवर्णचम्पक का खण्ड हो, हल्दी, हल्दी का टुकड़ा हो, हल्दी के सार की गुटिका हो, हरिताल (पृथ्वीविकार रूप द्रव्य) हो, हरिताल का टुकड़ा हो, हरिताल की गुटिका हो, चिकुर (रागद्रव्यविशेष) हो, चिकुर से बना हुया वस्त्रादि पर रंग हो, श्रेष्ठ स्वर्ण हो, कसौटी पर घिसे हुए स्वर्ण की रेखा हो, (स्वर्ण की सीप हो), वासुदेव का वस्त्र हो, सल्लकी का फूल हो, स्वर्णचम्पक का फूल हो, कूष्माण्ड का फूल हो, कोरन्टपुष्प को माला हो, तडवडा (आवली) का फूल हो, घोषातकी का फूल हो, सुवर्णयूथिका का फूल हो, सुहरण्यिका का फूल हो, बीजकवृक्ष का फूल हो, पीला अशोक हो, पीला कनेर हो, पीला बन्धुजीवक हो / भगवन् ! उन पीले तृणों और मणियों का ऐसा वर्ण है क्या? गौतम ! ऐसा नहीं है। वे पीले तृण और मणियां इनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर वर्ण वाली हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org