________________ 352] [नौवाजीवामिममसूत्र सीए सीओभासे-वह बनखण्ड शीत और शीतावभास है। जब पत्त बाल्यावस्था पार कर माते हैं तब वे शीतलता देने वाले हो जाते हैं। उनके योग से वह वनखण्ड भी शीतलता देने वाला है और शीतल ही प्रतीत होता है। णिद्ध णिद्धोभासे, तिब्वे तिव्योभासे-ये काले नीले हरे रंग अपने स्वरूप में उत्कट, स्निग्ध और तीव्र कहे जाते हैं। इस कारण इनके योग से वह वनखण्ड भी स्निग्ध, स्निग्धावभास, तीव, तीव्रावभास कहा गया है। अवभास भ्रान्त भी होता है / जैसे मरु-मरीचिका में जल का अवभास भ्रान्त है। प्रतएव भ्रान्त अवभास का निराकरण करते हुए अन्य विशेषण दिये गये हैं, यथा किण्हे किण्हछाये-वह वनखण्ड सबको समानरूप से काला और काली छाया वाला प्रतीत होता है। सबको समानरूप से ऐसा प्रतीत होने से उसकी अविसंवादिता प्रकट की है। जो भ्रान्त अवभास होता है, वह सबको एक सरीखा प्रतीत नहीं होता है। नीले नीलच्छाये, सीए सीयच्छाये-वह वनखण्ड नोला और नीली छाया वाला है। शीतल और शीतल छाया वाला है। यहां छाया शब्द आतप का प्रतिपक्षी वस्तुवाची समझना चाहिए। घणकरियच्छाए-इस वनखण्ड के वृक्षों की छाया मध्यभाग में प्रति धनी है क्योंकि मध्यभाग में बहुत-सी शाखा-प्रशाखाएं फैली हुई होती हैं। इससे उनकी छाया घनी होती है। रम्मे-यह वनखण्ड रमणीय है। महामेहनिकुरंबभूए-वह वनखण्ड जल से भरे हुए महामेघों के समुदाय के समान है। वनखण्ड के वृक्षों का वर्णन मूलपाठ से ही स्पष्ट है जो कोष्ठक में दिया गया है। उस वनखण्ड का भूमिभाग अत्यन्त रमणीय और समतल है। उस समतलता को बताने के लिए विविध उपमाएँ दी गई हैं / मुरज, मृदंग, सरोवर, करतल, प्रादर्शमण्डल, चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, उरभ्रचर्म, वृषभचर्म आदि विविध पशुओं के खींचे हुए चर्म के तल से उस भूभाग की समतलता की सुलना की गई है। उक्त पशुओं के चर्म को कीलों की सहायता से खींचने पर वह एकदम सलरहित होकर समतल—एकसरीखा तल वाला होता है, वैसा ही वह भूभाग ऊबड़-खाबड या ऊँचा-नीचा और विषम न होकर समतल है, अतएव अत्यन्त रमणीय है। इतना ही नहीं उस समतल भूमिभाग पर विविध भांति के चित्र चित्रित हैं। इन चित्रों में पावर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्यमाणव, वर्द्ध मानक, मत्स्यंडक, मकरंडक जारमार लक्षण वाली पांच वर्ण की मणियों से निर्मित चित्र हैं। पुष्पावली, पक्षपत्र, सागरतरंग, वासन्तीलता, पद्मलता आदि के विविध चित्र पांच वर्ण वाली मणियों और तृणों से चित्रित हैं। वे मणियां पांच रंगों की हैं, कान्तिवाली, किरणोंवाली हैं। उद्योत करने वाली हैं। अगले सूत्रखण्ड में पांच वर्गों की मणियों एवं तृणों का उपमानों द्वारा वर्णन किया गया है, वह इस प्रकार है 126. [2] तत्थ णं जे ते किण्हा तणा य मणि य तेसि णं अयमेयारवे वण्णावासे पण्णत्ते, से जहाणामए जीमूएइ वा, अंजणे इ वा, खंजणे इ वा, कज्जले इवा,' मसी इवा, गुलिया इवा, गवले इ १-किन्हीं-किन्हीं प्रतियों में मसी इवा, 'गुलियावा' पाठ नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org