Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 356] [जीवाजीवाभिगमसूत्र कुंकुमपुटों उशीरपुटों (खस)चंपकपुटों, मरवापुटों दमनकपुटों, जातिपुटों (चमेली), जूहीपुटों, मल्लिकापुटों (मोगरा), नवमल्लिकापुटों, वासन्तीलतापुटों, केवडा के पुटों और कपूर के पुटों को अनुकूल वायु होने पर उघाड़े जाने पर, भेदे जाने पर, कूटे जाने पर, छोटे-छोटे खण्ड किये जाने पर, बिखेरे जाने पर, ऊपर उछाले जाने पर, इनका उपभोग-परिभोग किये जाने पर और एक बर्तन से दूसरे बर्तन में डाले जाने पर जैसी व्यापक और मनोज्ञ तथा नाक और मन को तृप्त करने वाली गंध निकलकर चारों तरफ फैल जाती है, हे भगवन् ! क्या वैसी गंध उन तणों और मणियों की है ? गौतम ! यह बात यथार्थ नहीं है। इससे भी इष्टतर, कान्ततर, प्रियतर, मनोज्ञतर और मनामतर गंध उन तृणों और मणियों की कही गई है। 126. (8) तेसि णं भंते ! तणाण य मणीण य केरिसए फासे पण्णत्ते? से जहाणामएमाईणे इ वा, रुए इ वा, बूरे इ वा, णवणोए इ वा, हंसगमतूली इवा, सिरीसकुसुमणिचए इवा, बालकुमुद पत्तरासी इ वा, भवे एयारवे सिया ? णो तिणठे समझें / तेसि णं तणाण य मणीण य एत्तो इट्टतराए चेव जाव फासे णं पण्णत्ते / [126] (8) हे भगवन् ! उन तृणों और मणियों का स्पर्श कैसा कहा गया है ? जैसेआजिनक (मृदु चर्ममय वस्त्र), रुई, बूर वनस्पति, मक्खन, हंसगर्भलिका, सिरीष फूलों का समूह, नवजात कुमुद के पत्रों की राशि का कोमल स्पर्श होता है, ऐसा उनका स्पर्श है क्या ? गौतम ! यह अर्थ यथार्थ नहीं है / उन तृणों और मणियों का स्पर्श उनसे भी अधिक इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मणाम (मनोहर) है / 126. (9) तेसिं गं भंते ! तणाण य मणीण य पुग्वायरदाहिणउत्तरागएहिं वाएहि मंदायं मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं खोभियाणं चालियाणं फंदियाणं घट्टियाणं उदीरियाणं केरिसए सद्दे पण्णत्ते ? से जहानामए–सिबियाए बा, संदमाणीयाए वा, रहवरस्स वा, सच्छत्तस्स सज्मयस्स सघंटयस्स सतोरणवरस्स सणंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपेरंतपरिक्खित्तस्स हेमवयखेत्त चित्तविचित्त तिणिसकणगनिज्जुत्तदारुयागस्स सुपिणद्धारकमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मरस आइण्णवरतरगसुसंपउत्तस्स कुसलगरछेयसारहिसुसंपरिगहियस्स सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियस्स सकंकडडिसगस्स सचावसरपहरणावरणभरियस्स जोहजुद्धस्स रायंगणंसि वा अंतेउरंसि वा रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि अभिक्खणं अभिक्खणं अभिघट्टिज्जमाणस्स वा णियडिज्जमाणस्स वा ओराला मणुण्णा कण्णमणणिव्वुइकरा सम्वओ समंता सद्दा अभिणिस्सवंति, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणठे समठे। से जहानामए-वेयालियाए वीणाए उत्तरमंदामुच्छिताए अंके सुपइट्टियाए चंदणसारकोणपडिघट्टियाए कुसलणरणारिसंपरिगहियाए पदोस-पच्चूसकालसमयंसि मंदं मंदं एइयाए वेइयाए खोभियाए उदोरियाए ओराला मणण्णा कण्णमणिम्वइकरा सव्वओ समंता सहा अभिणिस्सर्वति, मवे एयारूवे सिया? 1. तणाणं पुव्वा. इत्येव पाठः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org