Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 328] [जीवाजीवाभिगमसूत्र इन्हीं स्थानों में दो असुरकुमारों के राजा चमरेन्द्र और बलीन्द्र निवास करते हैं। वे काले, महानील के समान, नील की गोली, गवल (भैसे का सींग), अलसी के फूल के समान रंगवाले, विकसित कमल के समान निर्मल, कहीं श्वेत-रक्त एवं ताम्र वर्ण के नेत्रों वाले, गरुड़ के समान ऊँची नाक वाले, पुष्ट या तेजस्वी मूंगा तथा बिम्बफल के समान अधरोष्ठ वाले, श्वेत विमल चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल दंतपंक्ति वाले, अग्नि में तपाये और धोये हुए सोने के समान लाल तलवों, तालु तथा जिह्वा वाले, अजन तथा मेघ के समान काले रुचक रत्न के समान रमणीय एवं स्निग्ध बाल वाले, बाएं एक कान में कुण्डल के धारक आदि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् वे दिव्य उपभोग्य भोगों को भोगते हुए विचरते हैं। दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास हैं। असुरकुमारेन्द्र असुरकुमार राजा चमर वहाँ निवास करता है। वह 64 हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिशक देव, चार लोकपाल, सपरिवार, पांच अग्रमहिषियों तोन पर्षदा, सात अनीक, सात अनिकाधिपति, चार 64 हजार (अर्थात् दो लाख छप्पन हजार) आत्मरक्षक देव और अन्य बहुत से दक्षिण दिशा के देव-देवियों का प्राधिपत्य करता हुआ विचरता है। उत्तर दिशा के असुरकुमारों के तीस लाख भवनावास हैं। उन तीस लाख भवनावासों का, साठ हजार सामानिक देवों का, चार लोकपालों का, सपरिवार पांच अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपतियों का, चार साठ हजार (दो लाख चालीस हजार) आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से उत्तर दिशा के असुरकुमार देव-देवियों का आधिपत्य करता हुआ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलीन्द्र वहाँ निवास करता है / चमरेन्द्र को परिषद् का वर्णन [118.] चमरस्स गं भंते ! असुरिरदस्स असुरन्नो कइ परिसाओ पण्णताओ? गोयमा ! तओ परिसानो पण्णताओ, तं जहा–समिया, चंडा, जाया। अभितरिया समिया, मज्झिमिया चंडा बाहिरिया जाया। चमरस्स णं भंते ! असुरिक्स्स असुररन्नो अम्भितरपरिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमपरिसाए कई देवसाहस्सोओ पण्णत्ताओ ? बाहिरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सोओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अम्भितरपरिसाए चउवीसं देवसाहस्सीमो पण्णत्ताओ, मजिसमाए परिसाए अट्ठावीसं देबसाहस्सीओ पण्णताओ, बाहिरियाए परिसाए बत्तीसं देवसाहस्सीमो पण्णत्ताओ। चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो अम्भितरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णता ? मज्झिमियाए परिसाए कइ देविसया पण्णता ? बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ? __ गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो अभितरियाए परिसाए अद्ध द्वा देविसया पण्णता ममिमियाए परिसाए तिन्नि देविसया पण्णत्ता बाहिरियाए अड्डाइज्जा देविसया पण्णता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org