________________ तृतीय प्रतिपत्ति : नागकुमारों की वक्तव्यता] [335 असुरकुमारों के 64 लाख भवन हैं, नागकुमारों के 84 लाख, सुपर्णकुमारों के 72 लाख, वायुकुमारों के 96 लाख द्वीपकुमार, दिक्कुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार इन छह भवनपतियों के प्रत्येक के 76-76 लाख भवन हैं / (1-2) / दक्षिण और उत्तर दिशाओं के भवनवासियों के भवनों की अलग-अलग संख्या इस प्रकार है दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के 34 लाख भवन, नागकुमारों के 44 लाख, सुपर्णकुमारों के 38 लाख, वायुकुमारों के 50 लाख शेष 6 द्वीप-दिशा-उदधि, विद्युत्, स्तनित, अग्निकुमारों के प्रत्येक के 40-40 लाख भवन हैं। (3) __उत्तरदिशा के असुरकुमारों के भवन 30 लाख, नागकुमारों के 40 लाख, सुपर्णकुमारों के 34 लाख, वायुकुमारों के 46 लाख शेष छहों के प्रत्येक के 36-36 लाख भवन हैं। इस प्रकार दक्षिण और उत्तर दोनों दिशाओं के भवनपतियों के भवनों की संख्या मिलाकर कुल भवनसंख्या प्रथम और दूसरी गाथा में कही गई है। भवनपति इन्द्रों के नामों को बताने वाली गाथाओं में पहले दक्षिण दिशा के इन्द्रों के नाम बताये हैं दक्षिण दिशा के असुरकुमारों का इन्द्र चमर है। नागकुमारों का धरण, सुपर्णकुमारों का वेणुदेव, विद्युत्कुमारों का हरिकान्त, अग्निकुमारों का अग्निशिख, द्वीपकुमारों का पूर्ण, उदधिकुमारों का जलकान्त, दिक्कुमारों का अमितगति, वायुकुमारों का वेलम्ब और स्तनितकुमारों का घोष इन्द्र है। ___ उत्तरदिशा के असुरकुमारों का इन्द्र बलि है / नागकुमारों का भूतानन्द, सुपर्णकुमारों का देणुदाली, विद्युत्कुमारों का हरिस्सह, अग्निकुमारों का अग्निमाणव, द्वीपकुमारों का विशिष्ट, उदधिकुमारों का जलप्रभ, दिककुमारों का अमितवाहन, वायुकुमारों का प्रभंजन, और स्तनितकुमारों का महाघोष है। दीव दिसा उदहीणं विज्जुकुमारिंद थणियमग्गीणं / छण्हं पि जुयलयाणं छावत्तरियो सयसहस्सा // 2 // चोत्तीसा चोयाला अद्वतीसं च सयसहस्साई। पण्णा चत्तालीसा दाहिणग्रो होंति भवणाई // 3 // तीसा चत्तालीसा चोत्तीसं चेव सयसहस्साई। छायाला छत्तीसा उत्तरप्रो होंति भवणाइं // 4 // चमरे धरणे तह बेणुदेव हरिकंत अग्गिसिहे य / पुण्णे जलकते अमिए लंबे य घोसे य // 5 // बलि भूयाणंदे वेणुदालि हरिस्सह अम्गिमाणव विसिट्टे / जलप्पभ अभियवाहण पभंजणे चेव महघोसे // 6 // चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं / / सामाणिया उ एए चउग्गुणा पायरक्खा उ // 7 // -संग्रहणी गाथाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org