________________ 34] [जीवानीवाभिगमसूत्र जातियों के कमलों से शोभायमान हैं / सामान्य कमल को उत्पल कहते हैं। सूर्यविकासी कमल को पा तथा चन्द्रविकासी कमल को कुमुद, ईषद् रक्त कमल को नलिन कहते हैं। सुभग और सौगन्धिक भी कमल की जातियां है / पुण्डरीक महापुण्डरीक कमल श्वेत वर्ण के होते हैं / सौ पत्तों वाला कमल शतपत्र है और हजार पत्तों वाला कमल सहस्रपत्र है। विकसित केसरों (परागों) से वे द्वीप समुद्र अत्यन्त शोभनीय हैं। ये प्रत्येक द्वीप और समुद्र एक पद्मवरवेदिका से और एक बनखण्ड से परिमण्डित हैं (घिरे हुए हैं)। इस तिर्यक्लोक में एक द्वीप और एक समुद्र के क्रम से असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। सबसे अन्त में स्वयंभूरमण समुद्र है / इस प्रकार अवस्थिति, संख्या, प्रमाण और संस्थान का कथन किया। आकारभाव प्रत्यवतार का कथन अगले सूत्र में किया गया है। जम्बूद्वीप वर्णन : 224. तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णामं दो दीवसमुद्दाणं अभितरिए सव्वखुड्डाए बट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए बट्टे, रहचक्कवालसंठाणसंठिए बट्टे, पुक्खरकण्णियासंठागसंठिए बट्टे, पडिपुन्नचंदसंठाणसंठिए एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिणि जोयणसहस्साई सोलस य सहस्साई दोग्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावोसं च धणुसयं तेरस अंगुलाई असंगुलकं च किचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णते। से णं एक्काए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। सा गं जगतो अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले वारस जोयणाई विखंभेणं मज्झे अट्ठयोजणाई विक्खंमेणं उप्पि चत्तारि जोयणाई विक्खंमेणं, मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सहा लण्हा घट्ठा मट्ठा णोरया णिम्मला णिप्पंका णिकरकंडक्छाया सप्पभा समिरीया सउज्जोया पासादीया बरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा / सा णं जगती एक्केणं जालकडएणं सध्यमो समंता संपरिक्खिता। से णं जालकडए णं अजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच षणुसयाई विक्खंमेणं सम्वरयणामए अच्छे सण्हे लण्हे जाव पडिरूवे। [124] उन द्वीप समुद्रों में यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सबसे प्राभ्यन्तर (भीतर का) है, सबसे छोटा है, गोलाकार है, तेल में तले पूए के आकार का गोल है, रथ के पहिये के समान गोल है, कमल की कणिका के आकार का गोल है, पूनम के चांद के समान गोल है। यह एक लाख योजन का लम्बा चौड़ा है। तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस (3,16,227) योजन, तीन कोस, एक सो अट्ठाईस धनुष, साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला है। __ यह जम्बूद्वीप एक जगती से चारों ओर से घिरा हुआ है। वह जगती पाठ योजन ऊंची है। उसका विस्तार मूल में बारह योजन, मध्य में पाठ योजन और ऊपर चार योजन है / मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर से पतली है / वह गाय की पूंछ के आकार की है / वह पूरी तरह वधरत्न की बनी हुई है / वह स्फटिक की तरह स्वच्छ है, चिकनी है, घिसी हुई होने से मृदु है / वह घिसी हुई, मंजी हुई (पालिस की हुई) रजरहित, निर्मल, पंकरहित, निरुपघात दीप्ति वाली, प्रभा वाली, किरणों वाली, उद्योत वाली, प्रसन्नता पैदा करने वाली, दर्शनीय, सुन्दर और अति सुन्दर है / वह जगती एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org