________________ तृतीय प्रतिपत्ति : वनखण्ड-धर्मन] पर, सूचियों के नीचे और ऊपर, दो सूचियों के अन्तरों में, वेदिका के पक्षों में, पक्षों के एक देश में, दो पक्षों के अन्तराल में बहुत सारे उत्पल (कमल), पद्म (सूर्यविकासी कमल), कुमुद, (चन्द्रविकासी कमल), नलिन, सुभग, सौंगन्धिक, पुण्डरीक (श्वेतकमल), महापुण्डरीक (बड़े श्वेतकमल), शतपत्र, सहस्रपत्र आदि विविध कमल विद्यमान हैं। वे कमल सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं / ये सब कमल वर्षाकाल के समय लगाये गये बड़े छत्रों (छतरियों) के आकार के हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! इस कारण से पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका कहा जाता है। हे भगवन् ! पावरवेदिका शाश्वत है या अशाश्वत है ? गौतम ! वह कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है। - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि पद्मवरवेदिका कथञ्चित् शाश्वत है और कञ्चित् अश्वाश्वत है ? __ गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है और वर्णपर्यायों से, रसपर्यायों से, गन्धपर्यायों से, और स्पर्शपर्यायों से प्रशाश्वत है। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पद्मवरवेदिका कथञ्चित् शाश्वत है और कथञ्चित् अशाश्वत है। हे भगवन् ! पद्मवरवेदिका काल की अपेक्षा कब तक रहने वाली है ? गौतम ! वह 'कभी नहीं थी'-ऐसा नहीं है 'कभी नहीं है। ऐसा नहीं है, 'कभी नहीं रहेगी ऐसा नहीं है / वह थी, है और सदा रहेगी। वह ध्रव है, नियत है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है / यह पावरवेदिका का वर्णन हुआ। बनखण्ड-वर्णन 126 [1] तोसे गं जगईए उप्पि बाहि पउमवरवेदियाए एल्थ गं एगे महं वनसंडे पण्णते, वसूणाई दो जोयणाई चकवालविक्खंभेणं जगतोसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे जाव [ते गं पायवा मूलवंता कंदवता खंधवंता तयावंता सालवंता पवालवंता पत्तपुप्फफलवीयवंता अणपुथ्वसुजायरुइलवट्टमावपरिणया एगखंधी अणेगसाहप्पसाहविडिमा, अणेगणरव्वामसुपसारियगेज्म-घणविउलयदृखंषा अच्छिद्दपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईइपत्ता णियजरढपंडुरपत्ता, नवहरियभिसंतपत्तंषयारगंभीरवरिसणिज्जा उवविणिग्गयणवतरुणपत्तपल्लवकोमलुज्जलचलंतकिसलयसुकुमालसोहियवरंकुरग्गसिहरा, णिच्चं कुसुमिआ णिच्चं मउलिया णिच्चं लवइया निच्चं थवइया, णिच्चं गोच्छिया निच्चं जमलिया गच्च जुलिया निच्चं विणमिया निच्चं पणमिक्षा निच्चं कुसुमिय-मउलिय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छिय-जमलिय-जुगलियविणमियपणमियसुविभत्तपडिमंजरिवडंसगधरा सुप-बरहिण-मयणसलागा-कोइल-कोरग-भिगारग-कोंडलग-जीवंजीवगगंविमुह-कविल-पिंगलक्ख-कारंडव-चक्कवाग-कलहंस-सारसाणेगसउणगणमिण विचारिय सद्दुनाइयमहरसनाइय-सुरम्मा संपिडियदप्पियभमर-महुयरीपहकरा परिलीयमाणमत्तछप्पय-कुसुमासवलोलमहुरगुमगुमायंत-गुजंतदेसभागा अग्मितरपुष्फफला बाहिरपत्तछन्ना जीरोगा अकंटगा साउफला गिद्धफला गाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगसोहिया विचित्तसुहकेउबहुला वावी-पुक्खरिणि-दीहिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org