Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: चमरेन्द्र का परिषदा की वर्णन] [331 पण्णत्ता, ममिमियाए परिसाए चउबीसं देवसहस्सा पणत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता। अम्भितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया. मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठा देविसया पण्णत्ता। बलिस्स ठितीए पुच्छा जाव वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! बलिस्स गं वइरोणिदस्स बहरोयणरन्नो अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्भुष्टुपलिओक्मा ठिई पण्णता, ममिमियाए परिसाए तिन्नि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, वाहिरियाए परिसाए देवाणं अट्ठाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पण्णता, अभितरियाए परिसाए देवीणं अढाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओवमाइं ठिई पणत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं विषड्ढं पलिश्रोवमं ठिई पण्णत्ता, सेसं जहा चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो। [119] हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? गौतम ! जैसा स्थान पद में कहा गया है, वह कथन कहना चाहिए यावत् वहाँ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है / हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की कितनी पर्षदा कही गई हैं ? गौतम ! तीन परिषदाएँ कही गई हैं, यथा-समिता, चण्डा और जाता / प्राभ्यन्तर परिषदा समिता कहलाती है, मध्यम परिषदा चण्डा है और बाह्य पर्षद् जाता है। हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की प्राभ्यन्तर परिषदा में कितने हजार देव हैं ? मध्यम पर्षद् में कितने हजार देव हैं यावत् बाह्य परिषदा में कितनी सौ देवियाँ हैं ? गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की आभ्यन्तर परिषद् में बीस हजार देव हैं, मध्यम परिषदा में चौवीस हजार देव हैं और बाह्य परिषदा में अट्ठावीस हजार देव हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् में साढ़े चार सौ देवियाँ हैं, मध्यम परिषदा में चार सो देवियाँ हैं / बाह्य परिषदा में साढ़े तीन सौ देवियाँ हैं। हे भगवन ! बलि की परिषदा की स्थिति के विषय में प्रश्न है यावत् बाह्य परिषदा की देवियों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति साढ़े तीन पल्योपम की है, मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की है और बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति ढाई पल्योपम की है / प्राभ्यन्तर परिषद् की देवियों की स्थिति ढाई पल्योपम की है / मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति दो पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति डेढ़ पल्योपम की है। शेष वक्तव्यता असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की तरह कहनी चाहिए।' 1. देवदेविसंख्यास्थिति विषयक संग्रहणिगाथा बीसउ चउवीस अट्ठावीस सहस्साण होन्ति देवाणं / अद्धपण चउद्धठा देविसय बलिस्स परिसासु // 1 // अट्ट तिन्नि अड्ढाइज्जाई होति पलिय देव ठिई। अड्ढाइज्जा दोणि य दिवढ देवीण ठिई कमसो // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org