________________ तृतीय प्रतिपत्ति : गेहाकार कल्पवृक्ष] [299 (टोका), पुष्प के आकार का ललाट का आभरण (बिंदिया), सिद्धार्थक (सर्षप प्रमाण सोने के दानों से बना भूषण), कर्णपाली (लटकन), चन्द्र के आकार का भूषण, सूर्य के आकार का भूषण, (ये बालों में लगाये जाने वाले पिन जैसे हैं), वृषभ के आकार के, चक्र के आकार के भूषण, तल भंगक-त्रुटिक (ये भुजा के आभूषण-भुजबंद हैं), मालाकार हस्ताभूषण, वलक्ष (गले का भूषण), दीनार की आकृति की मणिमाला, चन्द्र-सूर्यमालिका, हर्षक, केयूर, वलय, प्रालम्बनक (झूमका), अंगुलीयक (मुद्रिका) काञ्ची, मेखला, कलाप, प्रतरक, प्रातिहारिक, पाँव में पहने जाने वाले घुघरू, किंकणी (बिच्छुडी), रत्नमय कन्दोरा, नूपुर, चरणमाला, कनकनिकर माला आदि सोना-मणि-रत्न आदि की रचना से चित्रित और सुन्दर प्राभूषणों के प्रकार हैं उसी तरह वे मण्यंग वृक्ष भी नाना प्रकार के बहुत से स्वाभाविक परिणाम से परिणत होकर नाना प्रकार के भूषणों से युक्त होते हैं / वे दर्भ, कास आदि से रहित मूल वाले हैं और श्री से अतीव शोभायमान हैं / / 9 / / गेहाकार कल्पवृक्ष [11] एगोरुय दीवे णं बीवे तत्थ तत्थ बहवे गेहागारा नाम दुमगणा पण्णता समणाउसो! जहा से पागाराट्टालक चरियगोपुरपासायाकासतल मंडव एगसाल विसालगतिसालग चउरंस चउसालगम्भघर मोहणघर बलभिघर चित्तसाल मालय भत्तिघर वट्टतंस चउरंस णंदियावत्त संठियायत पंडुरतल मुंडमालहम्मियं अहव णं धवलहरबद्धमागहविम्भमसेलद्धसेल संठिय कूडागारड सुविहिकोढगअणेगघर सरणलेण आवण विडंगजाल चंदणिज्जहअपवरक दोवालि चंदसालियरूव विभत्तिकलिया भवणविही बहुविकप्पा तहेव ते गेहागारा वि दुमगणा अणेगबहुविविध वीससा परिणयाए सुहालहणे सुहोत्ताराए सुहनिक्खमणप्पसाए बद्दरसोपाणपंति कलियाए पइरिक्काए सुहविहाराए मणोणुकलाए भवणविहीए उक्वेया कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाब चिट्ठति // 9 // [111] (11) हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से गेहाकार नाम क कल्पवृक्ष कह गये है। जैसे-प्राकार (परकोटा) अट्टालक (अटारी) चरिका (प्राकार और शहर के बीच पाठ हाथ प्रमाण मार्ग) द्वार (दरवाजा) गोपुर (प्रधानद्वार) प्रासाद (राजमहल) प्राकाशतल (अगासी) मंडप (पाण्डाल) एक खण्ड वाले मकान, दो खण्ड वाले मकान, तीन खण्ड वाले मकान, चौकोने, चार खण्ड वाले मकान गर्भगृह (भौंहरा) मोहनगृह (शयनकक्ष) वलभिघर (छज्जा वाला घर) चित्रशाला से सज्जित प्रकोष्ठ गृह, भोजनालय, गोल, तिकोने, चौरस, नंदियावर्त आकार के गृह, पाण्डुर-तलमुण्डमाल (छत रहित शुभ्र प्रांगन वाला घर) हर्म्य (शिखररहित हवेली) अथवा धघल गृह (सफेद पुते सौध) अर्धगृह-मागधगृह-विभ्रमगृह (विशिष्ट प्रकार के गृह) पहाड़ के अर्धभाग जैसे आकार के, पहाड़ जैसे आकार के गृह, पर्वत के शिखर के आकार के गृह, सुविधिकोष्टक गृह (अच्छी तरह से बनाये हुए कोठों वाला गृह) अनेक कोठों वाला गृह, शरणगृह शयनगृह आपणगृह (दुकान) विडंग (छज्जा वाले गृह) जाली वाले घर निव्यूह (दरवाजे के आगे निकला हुआ काष्ठभाग) कमरों और द्वार वाले गृह और चाँदनी आदि से युक्त जो नाना प्रकार के भवन होते हैं, उसी प्रकार वे गेहाकार वृक्ष भी विविध प्रकार के बहुत से स्वाभाविक परिणाम से परिणत भवनों और गृहों से युक्त होते हैं / उन भवनों में सुखपूर्वक चढ़ा जा सकता है और सुखपूर्वक उतरा जा सकता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org