________________ तृतीय प्रतिपत्ति: देववर्णन] [325 प्रमाणक्षेत्र में भवनावास कहे गये हैं प्रादि वर्णन प्रज्ञापनापद के अनुसार जानना चाहिए / वहाँ भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास कहे गये हैं। उनमें बहुत से भवनवासी देव रहते हैं, यथा-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना चाहिए यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं / 117. कहिं णं भंते ! असुरकुमाराणं देवाणं भवणा पण्णता? पुच्छा? एवं जहा पण्णवणाठाणपदे जाव विहरति / कति गं भंते ! दाहिणिल्लाणं असुरकुमारदेवाणं भवणा पुच्छा ? एवं जहा ठाणपदे जाव चमरे, तत्थ असुरकुमारिदे परिवसइ जाव विहरइ / _ [117] हे भगवन् ! असुरकुमार देवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? ___ गौतम ! जैसा प्रज्ञापना के स्थानपद में कहा गया है, वैसा ही कथन यहाँ समझना चाहिए यावत् दिव्य-भोगों को भोगते हुए वे विचरण करते हैं / हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के भवनों के संबंध में प्रश्न है ? गौतम ! जैसा स्थानपद में कहा, वैसा कथन यहां कर लेना चाहिए यावत् असुरकुमारों का इन्द्र चमर वहां दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है। विवेचन—देवाधिकार का प्रारम्भ करते हुए देवों के 4 भेद बताये गये हैं---भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक / तदनन्तर इनके अवान्तर भेदों के विषय में प्रज्ञापना के प्रथमपद के अनुसार कहने की सूचना दी गई है / प्रज्ञापना में वे भेद इस प्रकार कहे हैं भवनपति के 10 भेद हैं-१. असुरकुमार, 2. नागकुमार, 3. सुपर्णकुमार, 4. विद्युत्कुमार, 5. अग्निकुमार, 6. द्वीपकुमार, 7. उदधिकुमार, 8. दिशाकुमार, 9. पवनकुमार और 10. स्तनितकुमार / इन दस के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से 20 भेद हुए। वानन्यन्तर के 8 भेद हैं-१. किन्नर, 2. किंपुरुष, 3. महोरग, 4. गंधर्व, 5. यक्ष, 6. राक्षस, 7. भूत, 8. पिशाच / इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद से 16 भेद हुए। ज्योतिष्क के पांच प्रकार हैं- 1. चन्द्र, 1. सूर्य, 3. ग्रह, 4. नक्षत्र और 5. तारे। इनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक / वैमानिक देव दो प्रकार के हैं---१. कल्पोपपन्न और 2. कल्पातीत / कल्पोपपन्न 12 प्रकार के हैं--१. सौधर्म, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्मलोक, 6. लान्तक, 7. महाशुक्र, 6. सहस्रार, 9. अानत, 10. प्राणत, 11. प्रारण और 12 अच्युत / कल्पातीत दो प्रकार के हैं-वेयक और अनुत्तरोपपातिक / अवेयक के 9 भेद हैं१.अधस्तनाधस्तन, 2. अधस्तनमध्यम, 3. अधस्तनउपरितन, 4. मध्यमअधस्तन, 5. मध्यम-मध्यम, 6. मध्यमोपरितन, 7. उपरिम-अधस्तन, 8. उपरिम-मध्यम और 9. उपरितनपरितन / अनुत्तरोपपातिक पांच प्रकार के हैं---१. विजय, 2. वैजयंत, 3. जयन्त, 4. अपराजित और सर्वार्थसिद्ध / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org