________________ 324] [जीवाजीवाभिगमसूत्र (7) सप्तम चतुष्क अवगाहन अायाम द्वीपनाम विदिशा परिधि द्वीपनाम 900 यो. 2845 यो. विशेषाधिक उल्कामुख मेघमुख विद्युन्मुख विद्युद्दन्त उत्तर पूर्व 900 यो. दक्षिण पूर्व दक्षिण पश्चिम / उत्तर पश्चिम , घनदन्त लष्टदन्त गूढदन्त शुद्धदन्त देववर्णन 114. से किं तं देवा? देवा चउठिवहा पण्णता, तजहा-भवणवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमागिया। [114] देव के कितने प्रकार हैं ? देव चार प्रकार के हैं, यथा-१. भवनवासी, 2. वानव्यंतर, 3. ज्योतिष्क और 4. वैमानिक / 115. से कि तं भवणवासी? भवणवासी दसविहा पण्णता, तंजहा-असुरकुमारा जहा पण्णवणापदे देवाणं मेओ तहा भाणियव्यो जाव अणुत्तरोववाइया पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-विजय वेजयंत जाव सव्वट्ठसिद्धगा, से तं अणुत्तरोषवाइया। [115] भवनवासी देवों के कितने प्रकार हैं ? भवनवासी देव दस प्रकार के हैं, यथा-असुरकुमार आदि प्रज्ञापनापद में कहे हुए देवों के भेद का कथन करना चाहिए यावत् अनुत्तरोपपातिक देव पांच प्रकार के हैं, यथा-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध / यह अनुत्तरोपपातिक देवों का कथन हुआ। 116. कहि णं भंते ! भवणवासिदेवाणं भवणा पण्णता? कहिं गं भंते ! भवणवासी देवा परिवसंति ? गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए, एवं जहा पण्णवणाए जाव भवणवासइया, तत्थ णं भवणवासीणं देवाणं सत्त भवणकोडीओ वावत्तरि भवणवाससयसहस्सा भवंति तिमक्खाया। तत्थ णं बहवे भवणवासी देवा परिवसंति-असुरा नाग सुवन्ना य जहा पण्णवणाए जाव विहरति / [116] हे भगवन् ! भवनवासी देवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? हे भगवन् ! वे भवनवासी देव कहाँ रहते हैं ? हे गौतम ! इस एक लाख अस्सी हजार योजन की मोटाई वाली रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन ऊपर और एक हजार योजन नीचे के भाग को छोड़कर शेष एक लाख अठहत्तर हजार योजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org