________________ 322] जीवाणीवाभिगमसूत्र से कि तं कम्ममूमगा? कम्ममूभगा पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहा--पंचहि भरहेहि, पंचहि एरवरहि, पंचहि महाविवेहेहिं / ते समासो दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आरिया मिलेच्छा, एवं जहा पग्णवणापदे जाव से तं आरिया, से तं गम्भवक्कंतिया, से तं मणुस्सा। [113] हे भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! अकर्मभूमिक मनुष्य तीस प्रकार के हैं, यथा-पांच हैमवत में (पांच हैरण्यवत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु क्षेत्र में) रहने वाले मनुष्य / इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना चाहिए / यह तीस प्रकार के प्रकर्मभूमिक मनुष्यों का कथन हुआ / हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! कर्मभूमिक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं यथा--पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह के मनुष्य / वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं, यथा-आर्य और म्लेच्छ / इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार कहना चाहिए / यावत् यह पार्यों का कथन हुअा। यह गर्भव्युत्क्रान्तिकों का कथन हुप्रा और उसके साथ ही मनुष्यों का कथन भी सम्पूर्ण हुआ। अट्ठाईस अन्तरद्वीपिकों के कोष्टक (1) प्रथम चतुष्क विदिशा अवगाहन आयाम परिधि द्वीप नाम 300 योजन 300 यो. 949 यो. विशेषाधिक मेरु के दक्षिण में क्षुद्रहिमवान के उत्तरपूर्व दक्षिणपूर्व दक्षिणपश्चिम उत्तरपश्चिम एकोरुक प्राभाषिक वैषाणिक लांगलिक (2) द्वितीय चतुष्क द्वीप नाम विदिशा अवगाहन पायाम परिधि द्वीप नाम 400 यो. एकोरुक आभाषिक वैषाणिक लांगलिक उत्तर पूर्व दक्षिण पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तर पश्चिम 400 यो. 1265 यो. विशेषाधिक हयकर्ण गजकर्ण गोकर्ण शष्कुलकर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org