________________ 300] जीवाजीवाभिगमसूत्र उनमें सुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण हो सकता है, उन भवनों के चढ़ाव के सोपान (पंक्तियां) समीपसमीप हैं, विशाल होने से उनमें सुखरूप गमनागमन होता है और वे मन के अनुकूल होते हैं। ऐसे नाना प्रकार के भवनों से युक्त वे गेहाकार वृक्ष हैं। उनके मूल कुश-विकुश से रहित हैं और वे श्री से अतीव शोभित होते हैं / 9 / / अनग्न कल्पवृक्ष _ [12] एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थ तत्थ बहवे अणिगणा णाम दुमगणा पण्णत्ता समणाउओ ! जहा से आजिणगखोम कंबल दुगुल्ल कोसेज्ज कालमिग पट्टचीणंसुय वरणातवार वणिगयतु आभरण चित्त सहिणग कल्लाणग भिगिणीलकज्जल बहुवण्ण रत्तपीत सुविकलमक्खय मिगलोम हेमरूप्पवण्णगअवरुत्तग सिंधुओस दामिल बंगलिंग नेलिण तंतुमयमत्तिचित्ता वस्थविही बहुप्पकारा हवेज्ज वरपट्टणुग्गया वण्णरागकलिया तहेव ते अणिगणावि दुमगणा अणेग बहुविविह वीससा परिणयाए वत्थविहीए उववेया कुसविकुस विसुद्धरुक्खमूला जाव चिट्ठति // 10 // [111] (12) हे आयुष्मन् श्रमण ! उस एकोरुक द्वीप में जहां-तहाँ अनग्न नाम के कल्पवृक्ष हैं / जैसे-यहाँ नाना प्रकार के प्राजिनक-चर्मवस्त्र, क्षोम-कपास के वस्त्र, कंबल-ऊन के वस्त्र, दुकूलमुलायम बारीक वस्त्र, कोशेय-रेशमी कीड़ों से निर्मित वस्त्र, काले मृग के चर्म से बने वस्त्र, चीनांशुकचीन देश में निर्मित वस्त्र, (वरणात वारवाणिगयतु-यह पाठ अशुद्ध लगता है। नाना देश प्रसिद्ध वस्त्र का वाचक होना चाहिए / ) आभूषणों के द्वारा चित्रित वस्त्र, श्लक्ष्ण-बारीक तन्तुओं से निष्पन्न वस्त्र, कल्याणक वस्त्र (महोत्सवादि पर पहनने योग्य उत्तमोत्तम वस्त्र) भंवरी नील और काजल जैसे वर्ण के वस्त्र, रंग-बिरंगे वस्त्र, लाल-पीले सफेद रंग के वस्त्र, स्निग्ध मृगरोम के वस्त्र, सोने चांदी के तारों से बना वस्त्र, ऊपर-पश्चिम देश का बना वस्त्र, उत्तर देश का बना वस्त्र, सिन्धु-ऋषमतामिल बंग-कलिंग देशों में बना हया सूक्ष्म तन्तुमय पारीक वस्त्र, इत्यादि नाना प्रकार के वस्त्र हैं जो श्रेष्ठ नगरों में कुशल कारीगरों से बनाये जाते है, सुन्दर वर्ण-रंग वाले हैं-उसी प्रकार वे अनग्न वृक्ष भी अनेक और बहुत प्रकार के स्वाभाविक परिणाम से परिणत विविध वस्त्रों से युक्त हैं। वे वृक्ष कुशकाश से रहित मूल वाले यावत् श्री से अतीव अतीव शोभायमान हैं // 10 // एकोहक द्वीप के मनुष्यों का वर्णन [13] एगोरुयदीवे णं भंते ! दीवे मणुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा! ते णं मणुस्सा अणुक्मतरसोमचारुरूवा, भोगुत्तमगयलक्खणा भोगसस्सिरीया सुजाय सम्वंगसुदरंगा, सुपइटिय कुम्मचारुचलणा, रत्तुप्पल पत्तमय सुकुमाल कोमलतला नगनगर सागर मगर चक्कंक वरंक लक्खणंकियचलणा अणुपुष्व सुसंहतंगुलीया उन्नत तणु तंबणिद्धणखा संठिय सुसिलिटुगूढगुप्फा एणी कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुग्वजंघा समुग्गणिमग्गगूढजाणू गयससणसुजात सण्णिभोरू वरवारणमत्ततुल्ल विक्कम विलासियगई सुजातवरतुरग गुज्झदेसा आइण्णहओग्व णिरुवलेवा, पमुइय वर तुरियसीह अतिरेग बट्टियकडी साहयसोणिद मूसल वप्पणणिगरित वरकणगच्छरुसरिस वर वइरपलिय मज्झा, उज्जुय समसहित सुजात जच्चतणकसिणणिद्ध प्रावेज्ज लडह सुकुमाल मउय रमणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org