________________ 304] [जीवाजीवाभिगमसूत्र __उनकी ऊँचाई पाठ सौ धनुष की होती है / हे आयुष्मन् श्रमण ! उन मनुष्यों के चौसठ पृष्ठकरंडक (पसलियां) हैं। वे मनुष्य स्वभाव से भद्र, स्वभाव से विनीत, स्वभाव से शान्त, स्वभाव से अल्प क्रोध-मान-माया, लोभ वाले, मृदुता और मार्दव से सम्पन्न होते हैं, अल्लोन (संयत चेष्टा वाले) हैं, भद्र, विनीत, अल्प इच्छा वाले, संचय-संग्रह न करने वाले, क्रूर परिणामों से रहित, वृक्षों की शाखाओं के अन्दर रहने वाले तथा इच्छानुसार विचरण करने वाले वे एकोहकद्वीप के मनुष्य हैं। हे भगवन् ! उन मनुष्यों को कितने काल के अन्तर से आहार की अभिलाषा होती है ? हे गौतम ! उन मनुष्यों को चतुर्थभक्त अर्थात् एक दिन छोड़कर दूसरे दिन आहार की अभिलाषा होती है। एकोरुकस्त्रियों का वर्णन [14] एगोरुयमणुई गं भंते ! केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णते? गोयमा ! ताओ गं मणुईओ सुजायसवंगसुबरीनो पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता अच्चत विसप्पमाण पउम सुमाल कुम्मसंठिय विसिट्ठ चलणाओ उज्जुमिउय पीवर निरंतर पुट्ट सोहियंगुलीआ उन्नयरइद तलिणतंबसुइणिद्धणखा रोमरहित वट्टलट्ठ संठियअजहण्ण पसत्थ लक्खण अकोप्पजंघयुगला सुम्मिय सुगूढजाणुमंडलसुबद्धसंघो कलिक्खंभातिरेग संठियणिव्वण सुकुमाल मउयकोमल अविरल समसहितसुजात वट्ट पीवरणिरंतरोरू अट्ठावयवीचिपट्टसंठिय पसत्थ विच्छिन्न पिलसोणी वदणायामप्पमाणदुगुणित विसाल मंसल सुबद्ध जहणवरधारणीओ वज्जविराइयपसत्थलक्षणगिरोदरा तिलि बलियतणुणमिय मज्झिमाओ उज्जुय समसंहित जच्चतणु कसिण णिद्धावेज्ज लडह सुविभत्त सुजात कंतसोभंत रुइल रमणिज्जरोमराई गंगावत्त पदाहिणावस्त तरंग भंगुररविकिरण तरुणबोधित अकोसायंत पउमवणगंभीरवियडनाभी अणुभाडपसत्थ पीणकुच्छी सण्णयपासा संगयपासा सुजातपासा मितमाइयपीण रइयपासा अकरंडय कणगल्यग निम्मल सुजाय गिरवहय गायलट्ठी कंचणकलससमपमाण समसंहितसुजात लट्ठ चुचुय आमेलग जमल जुगल वट्टिय अग्भण्णयरहयसंठिय पयोधराओ भुयंगणुपुवतणुयगोपुच्छ वट्ट समसंहिय णमिय आएज्ज ललिय बाहाओ तंबणहा मंसलग्नहत्था पीवरकोमल वरंगुलीओ णिद्धपाणिलेहा रविससि संख चक्कसोस्थिय सुविभत्त सुविरइय पाणिलेहा पोगुण्णय कक्खवस्थिदेसा पडिपुण्णगल्लकवोला चउरंगुलप्पमाण कंबुवर सरिसगोवा मंसलसंठिय पसस्थ हणुया दाडिमपुप्फप्पगास पोवरकुचियवराघरा सुबरोत्तरोटा वषिवगरय चंदकुद वासंतिमउल अच्छिद्दविमलदसणा रत्तप्पल पत्तमय सुकुमाल तालुपीहा कणयवरमुउल अकुडिल प्रभुग्गय उज्जुगनासा सारदनवकमलकुमुदकुवलय विमुक्कदल णिगर सरिस लक्खण अंकियकतणयणा पत्तल चवलायंततं बलोयणाओ आणामिय चावरुइलकिण्हाभराइसंठिय संगत आयय सुजाय कसिण गिद्धभमुया अल्लोण. पमाणजुत्तसवणा पीणमट्टरमणिज्ज गंडलेहा चउरंस पसत्थसमणिडाला कोमुइरयणिकरविमल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org