________________ नुतीय प्रतिपत्ति: एकोषक द्वीप के पुरुषों का वर्णन] [305 पडिपुग्नसोमवयणा छत्तन्नयउत्तिमंगा कुडिलसुसिणिद्ध वीहसिरया, छत्तज्झयजुगथूभवामिणि६.कमंडलुकलसवाविसोस्थियपडागजवमच्छकुम्भरहवरमकरसुकथालअंकुसट्टावइवीइसुपइ टकमयूरसिरिदामाभिसेयतोरणमेइणिउदधिवरभवणगिरिवरआयंसललियगयउसमसोहचमरउत्तमपसस्थबत्तीसलक्षण घराओ, हंससरिसगईओ कोइलमधुरगिरसुस्सराओ, कंता सव्वस्स अणुनयाओ, बबगतवलिपलिया, वंगदुग्दण्णवाहिदोभागसोगमुक्काओ उच्चत्तेणं य नराण थोवूणमूसियाओ समावसिंगारागारचारवेसा संगयगतहसितभाणियचेदियविलासंसलावणिउणजुत्तो क्यारकुसला सुवरथणजहणवदणकरचलणनयणमाला वण्णलावण्णजोवणविलासकलिया नंवणवण विवरचारिणीउव्व अच्छराओ अच्छेरगपेच्छणिज्जा पासाईयाओ वरिसणिज्जाओ अभिरुवाओ पडिरूवाओ। तासि णं भंते ! मणुईणि केवइकालस्स आहारठे समुप्पज्जा ? गोयमा ! चउत्थभत्तस्स प्राहारट्टे समुप्पज्जइ / [111] (14) हे भगवन् ! इस एकोरुक-द्वीप की स्त्रियों का आकार-प्रकार-भाव कैसा कहा गया है ? गौतम ! वे स्त्रियां श्रेष्ठ अवयवों द्वारा सर्वांगसुन्दर हैं, महिलाओं के श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं। उनके चरण अत्यन्त विकसित पद्मकमल की तरह सुकोमल और कछुए की तरह उन्नत होने से सुन्दर आकार के हैं। उनके पांवों की अंगुलियां सीधी, कोमल, स्थूल, निरन्तर, पुष्ट और मिली हुई हैं। उनके नख उन्नत, रति देने वाले, तलिन-पतले, ताम्र जैसे रक्त, स्वच्छ एवं स्निग्ध हैं / उनकी पिण्डलियां रोम रहित, गोल, सुन्दर, संस्थित, उत्कृष्ट शुभलक्षणवाली और प्रीतिकर होती हैं। उनके घुटने सुनिमित, सुगूढ और सुबद्धसंधि वाले हैं, उनकी जंघाएं कदली के स्तम्भ से भी अधिक सुन्दर, व्रणादि रहित, सुकोमल, मृदु, कोमल, पास-पास, समान प्रमाणवाली, मिली हुई, सुजात, गोल, मोटी एवं निरन्तर हैं, उनका नितम्बभाग अष्टापद धूत के पट्ट के आकार का, शुभ, विस्तीर्ण और मोटा है, (बारह अंगूल) मुखप्रमाण से दूना चोवीस अंगवप्रमाण. विशाल. मांसल एवं सबद्ध उनका जघनप्रदेश है, उनका पेट वज्र की तरह सुशोभित, शुभ लक्षणों वाला और पतला होता है, उनकी कमर त्रिवली से युक्त, पतली और लचीली होती है, उनकी रोमराजि सरल, सम, मिली हुई, जन्मजात पतली, काली, स्निग्ध, सुहावनी, सुन्दर, सुविभक्त, सुजात (जन्मदोषरहित), कांत, शोभायुक्त, रुचिर और रमणीय होती है। उनकी नाभि गंगा के प्रावर्त की तरह दक्षिणावर्त, तरंग भंगुर (त्रिवलि से विभक्त) सूर्य की किरणों से ताजे विकसित हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है। उनकी कुक्षि उग्रता रहित, प्रशस्त और स्थूल है। उनके पार्श्व कुछ झुके हुए हैं, प्रमाणोपेत हैं, सुन्दर हैं, जन्मजात सुन्दर त्रायुक्त स्थूल और आनन्द देने वाले हैं। उनका शरीर इतना मांसल होता है कि उसमें पीठ की हड्डी और पसलियां दिखाई नहीं देती। उनका शरीर सोने जैसी कान्तिवाला, निर्मल, जन्मजात सुन्दर और ज्वरादि उपद्रवों से रहित होता है। उनके पयोधर (स्तन) सोने के कलश के समान प्रमाणोपेत, दोनों (स्तन) बराबर मिले हुए, सुजात और सुन्दर हैं, उनके चचुक उन स्तनों पर मुकुट के समान लगते हैं। उनके दोनों स्तन एक साथ उत्पन्न होते हैं और एक साथ द्धिगत होते हैं। वे गोल उन्नत (उठे हुए) और प्राकार-प्रकार से प्रीतिकारी होते हैं। उनकी दोनों बाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org