________________ 316] [जीवानीवाभिगमसूत्र ऊपर उछलना), गांव को बहा ले जाने वाली वर्षा यावत् सनिवेश को बहा ले जाने वाली वर्षा और उससे होने वाला प्राणक्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि होते हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य जल से होने वाले उपद्रवों से रहित होते हैं। हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में लोहे की खान, तांबे की खान, सीसे की खान, सोने की खान, रत्नों की खान, वज्र-हीरों की खान, वसुधारा (धन की धारा), सोने की वृष्टि, चांदी की वृष्टि, रत्नों को वृष्टि,वज्रों-हीरों की वृष्टि,आभरणों की वृष्टि, पत्र-पुष्प-फल-बीज-माल्य-गन्ध-वर्ण-चूर्ण की दृष्टि, दूध की वृष्टि, रत्नों की वर्षा, हिरण्य-सुवर्ण यावत् चूर्णों की वर्षा, सुकाल, दुष्काल, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, सस्तापन, मंहगापन, क्रय, विक्रय, सन्निधि, संनिचय, निधि, निधान, बहुत पुराने, जिनके स्वामी नष्ट हो गये, जिनमें नया धन डालने वाला कोई न हो। जिनके गोत्री जन सब मर चुके हों ऐसे जो गांवों में, नगर में, आकर-खेट-कर्वट-मडंब-द्रोणमुख-पट्टन, आश्रम, संबाह और सनिवेशों में रखा हुमा, शृगाटक (तिकोना मार्ग), त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख महामार्गों पर, नगर की गटरों में, श्मशान में, पहाड़ की गुफाओं में, ऊँचे पर्वतों के उपस्थान और भवनगृहों में रखा हुना-गड़ा हुआ धन है क्या ? हे गौतम ! उक्त खान प्रादि और ऐसा धन वहाँ नहीं है / एकोरुक मनुष्यों की स्थिति आदि 111. [17] एगोरुयवोवे णं भंते ! दीवे मणुयाणं केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइमागं असंखेज्जइ भागेणं अणगं, उपकोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जहभाग। ते णं मणुस्सा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छति कहिं उववजंति ? गोयमा! ते णं मणुया छम्मासावसेसाउया मिहुणाई पसवंति, अउणासीई राइंदियाई मिहणाई सारक्खंति संगोविति य / सारक्खित्ता संगोवित्ता उस्ससित्ता निस्ससिसा कासित्ता छोइत्ता अक्किट्ठा अम्बहिया, अपरियाविया (पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागं परियाविय) सुहंसुहेण कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। देवलोयपरिग्गहा गं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो! [111] (17) हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप के मनुष्यों की स्थिति कितनी कही है ? हे गौतम ! जघन्य से असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्यातवां भागप्रमाण स्थिति है। हे भगवन् ! वे मनुष्य कालमास में काल करकेमरकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? हे गौतम ! वे मनुष्य छह मास की आयु शेष रहने पर एक मिथुनक (युगलिक) को जन्म देते हैं / उन्नयासी रात्रिदिन तक उसका संरक्षण और संगोपन करते हैं। संरक्षण और संगोपन करके ऊर्ध्वश्वास लेकर या निश्वास लेकर या खांसकर या छींककर बिना किसी कष्ट के, बिना किसी दुःख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org