________________ 29.] [जीवाजीवाभिगमसूत्र 108. से कितं अंतरदीवगा ? अंतरदीवगा अट्ठावीसइविहा पण्णता, तंजहा-एगुरुया आभासिया साणिया गांगोली हयकण्णगा० आयंसमुहा० प्रासमुहा० आसफण्णा० उक्कामुहा० घगवंता जाव सुखदंता। [108] हे भगवन् ! प्रान्तींपिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! प्रान्तीपिक अट्ठवीस प्रकार के हैं, जैसे कि एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक, नांगोलिक, हयकर्ण श्रादि, आदर्शमुख आदि, अश्वमुख प्रादि, अश्वकर्ण प्रादि, उल्कामुख आदि, घनदन्त आदि यावत् शुद्धदंत। __विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में गर्भज मनुष्यों के तीन प्रकार कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तर्वीपिकों का कथन करने के पश्चात् 'अस्त्यनानुपूयंपि' अर्थात् अननुक्रम से भी कथन किया जाता है, इस न्याय से अन्तर्दीपिकों के विषय में प्रश्न और उत्तर दिये गये हैं। लवणसमुद्र के अन्दर अन्तर्-अन्तर् पर द्वीप होने से ये अन्तर्द्वीप कहलाते हैं और इनमें रहने वाले मनुष्य 'तात्स्थ्यात्तव्यपदेशः' इस न्याय से अन्त:पिक कहे जाते हैं, जैसे पंजाब में रहने वाले पुरुष पंजाबी कहे जाते हैं। प्रान्तीपिक मनुष्य अट्ठावीस प्रकार के हैं, यथा--१. एकोरुक, 2. आभाषिक, 3. वैषाणिक, 4. नांगोलिक, 5. हयकर्ण, 6. गजकर्ण, 7. गोकर्ण, 8. शष्कुलीकर्ण, 9. प्रादर्शमुख, 10. मेण्ढमुख, 11. अयोमुख, 12. गोमुख, 13. अश्वमुख, 14. हस्तिमुख, 15. सिंहमुख, 16. व्याघ्रमुख, 17. अश्वकर्ण, 18. सिंहकर्ण, 19. अकर्ण, 20. कर्णप्रावरण, 21. उल्कामुख, 22. मेघमुख, 23. विद्युत्दंत, 24. विद्युजिह्व, 25. धनदन्त, 26. लष्ट दन्त, 27. गूढदन्त और 28. शुद्धदन्त / इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्य भी उसी नाम से जाने जाते हैं। इन प्रान्तीपिकों का आगे के सूत्र में विस्तार से वर्णन किया जा रहा है / एकोरुक मनुष्यों के एकोएकद्वीप का वर्णन 109. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं एगोल्यमणस्साणं एगोरुयवोवे णामं दोवे पण्णत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स वाहिणणं चुल्ल हिमवंतस्स वासघरपव्ययस्स उत्तरपुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुदं तिनि जोयणसयाई ओगाहित्ता एत्थ गंदाहिणिल्लाणं एगो. रुयमणुस्साणं एगोव्यदीवे णामं दीवे पण्णत्ते तिनि जोयणसयाई आयाम-विक्खंभेणं गवएगणपण्णजोयणसए किंचि विसेसेण परिक्खेवेणं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं च वणसंडेणं सव्वको समंता संपरिक्खिते। सा णं पउमवरवेदिया अटुनोयणाई उड्ड उच्चत्तणं पंचधणुसयाई विक्खमेणं एगोरुयदीवं समंता परिक्खेवेणं पण्णत्ता / तीसेणं पउमवरवेदियाए अयमेयारवे वण्णावासे पण्णते, तंजहा-बहरामया निम्मा एवं वेदियावण्णो जहा रायपसेणइए तहा भाणियव्यो। [106] हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ रहा हुमा है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org