________________ तृतीय प्रतिपत्ति मावि वर्णन] [296 वहाँ पृथ्वी शिलापट्टक भी है जिसका वर्णन प्रोपपातिकसूत्रानुसार जान लेना चाहिए / उस शिलापट्टक पर बहुत से एकोरुकद्वीपवासी स्त्री-पुरुष उठते-बैठते हैं, लेटते हैं, आराम करते हैं और पूर्वकृत शुभकर्मों के फल को भोगते हुए विचरण करते हैं। द्रुमादि वर्णन [2] एगोश्यहोवे गं वोवे तत्य तस्य देसे तहि तहिं बहवे उद्दालका कोद्दालका कयमाला णयमाला पट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमाला णाम दुमगणा पण्णता समणाउसो! कुसविकुसविसुक्खमूला मूलमंतो कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहि य पुप्फेहि य आछनपडिच्छण्णा सिरीए अतीव मतीव उवसोमेमाणा उक्सोमेमाणा चिट्ठति / एगोरुयवीवे गं बोवे रुक्खा बहवे हेण्यालवणा मेल्यालवणा मेरुयालवणा सेरुयालवणा साल. वणा सरलवणा सत्सवण्णवणा पूयफलिवणा खज्जूरीवणा गालिएरिवणा कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला आव चिट्ठति। एगोल्यदीवे णं सत्य तत्थ बहवे तिलया, लवया, नग्गोहा जाव रायरक्खा मंदिरुक्खा कुसविकुस विसुखरुक्खमूला जाव चिट्ठति / एगोव्यदीवे गं तत्थ बहूओ पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियानो एवं लयावण्णो जहा उववाइए जाव पडिरूवाओ। एगोव्यदीवे णं तत्थ तत्थ बहवे सेरियागुम्मा जाव महाजाइगुम्मा, ते गं गुम्मा बसवणं कुसुमं कुसुमंति विहुयग्गसाहा जेण वायविषयग्गसाला एगोव्यदीवस्स बहुसमरमणिज्जभूमिभागं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेंति / __ एगोक्यदीवे गं तत्थ तत्थ बहुमो वणराईओ पण्णत्ताओ, ताओ गं वणराईओ किण्हाओ किण्होभासाओ जाव रम्मामो महामेहणिकुरंबमूयाओ जाव महती गंधर्वाण मुयंतीओ पासाईयाओ। [111] (2) हे प्रायुष्मन् श्रमण ! एकोहक नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर यहाँ-वहाँ बहुत से उद्दालक, कोद्दालक, कृतमाल, नतमाल, नृत्यमाल, शृगमाल, शंखमाल, दंतमाल और शैलमाल नामक द्रुम (वृक्ष) कहे गये हैं / वे द्रुम कुश (दर्भ) और कांस से रहित मूल वाले हैं अर्थात् उनके आसपास दर्भ और कांस नहीं है / वे प्रशस्त मूल वाले, प्रशस्त कंद वाले यावत् प्रशस्त बीज वाले हैं और पत्रों तथा पुष्पों से आच्छन्न, प्रतिछन्न हैं अर्थात् पत्रों और फूलों से लदे हुए हैं और शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं। उस एकोरुकद्वीप में जगह-जगह बहुत से वृक्ष हैं। साथ ही हेरुतालवन,' भेरुतालवन, मेरुतालवन, सेरुतालवन, सालवन, सरलवन, सप्तपर्णवन, सुपारी के वन, खजूर के वन और नारियल के वन हैं / ये वृक्ष और वन कुश और कांस से रहित यावत् शोभा से अतीव-अतीव शोभायमान हैं। उस एगोरुकद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से तिलक, लवक, न्यग्रोध यावत् राजवृक्ष, नंदिवृक्ष हैं जो दर्भ और कांस से रहित हैं यावत् श्री से प्रतीव शोभायमान हैं। 1. वृक्षों के समुदाय को धन कहते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org