________________ तृतीय प्रतिपत्ति : अविशुद्ध-विशुद्ध लेश्या वाले अनगार का कथन) [285 हंता, जाणइ पासइ / जहा अविसुद्धलेस्से णं आलावगा एवं विसुद्धलेस्सेणं वि छ आलावगा भाणियव्वा जाब विसुद्धलेस्से णं भंते ! अणगारे समोहयासमोहएणं अप्पाणणं विसुद्धलेस्सं देवं देविं अणगारं जाणइ पासइ? हंता! जाणइ पास। [103] हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घात से विहीन प्रात्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है अर्थात् नहीं जानता-देखता है / भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि विहीन प्रात्मा द्वारा विशुद्धलेश्या वाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या? गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है / भगवन् ! अविशुद्ध लेश्या वाला अनगार वेदनादि समुदघातयुक्त अात्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या? गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है। हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घातयुक्त प्रात्मा द्वारा अविशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी को और अनगार को जानता-देखता है क्या ? गौतम ! यह अर्थ ठीक नहीं है / हे भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार जो वेदनादि समुद्धात से न तो पूर्णतया युक्त है और न सर्वथा विहीन है, ऐसी आत्मा द्वारा अविशुद्धलेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानतादेखता है क्या? गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है। भगवन् ! अविशुद्धलेश्या वाला अनगार समवहत-असमवहत प्रात्मा द्वारा विशुद्धलेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानता-देखता है क्या ? गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं है / भगवन् ! विशुद्धलेश्या वाला अनगार वेदनादि समुद्घात द्वारा असमवहत आत्मा द्वारा अविशुद्धलेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानता-देखता है क्या? हाँ, गौतम ! जानता-देखता है / जैसे अविशुद्धलेश्या वाले अनगार के लिए छह पालापक कहे हैं वैसे छह पालापक विशुद्धलेश्या वाले अनगार के लिए भी कहने चाहिए यावत् हे भगवन् ! विशुद्धलेश्या वाला अनगार समवहत-असमवहत आत्मा द्वारा विशुद्धलेश्या वाले देव, देवी और अनगार को जानता-देखता है क्या ? हाँ, गौतम ! जानता-देखता है / विवेचन-पूर्व सूत्र में स्थिति तथा निर्लेपना आदि का कथन किया गया / उस कथन को विशुद्धलेश्या वाला अनगार सम्यक् रूप से समझता है तथा अविशुद्धलेश्या वाला उसे सम्यक् रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org