________________ तृतीय प्रतिपत्ति : निलेप सम्बन्धी कथन] [283 पडप्पन्नवणप्फइकाइया णं भंते ! केवाइकालस्स पिल्लेवा सिया? गोयमा! पडुप्पन्नवणप्फइकाइया जहण्णपदे अपवा उक्कोसपदे अपदा, पडुप्पन्नवणप्फइकाइया णं णत्यि निल्लेवणा। पडप्पन्नतसकाइयाणं पुच्छा, जहण्णपदे सागरोक्मसयपुष्टुत्तस्स, उक्कोसपए सागरोवमसयपुहुत्तस्स, जहण्णपदा उक्कोसपए विसेसाहिया। {101-2] भगवन् ! अभिनव (तत्काल उत्पद्यमान) पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य से असंख्यात उत्सपिणी-अवसर्पिणी काल में और उत्कृष्ट से भी असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसपिणी काल में निर्लेप (खाली) हो सकते हैं। यहाँ जघन्य पद से उत्कृष्ट पद में असंख्यातगुण अधिकता जाननी चाहिए / इसी प्रकार अभिनव वायुकायिक तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। ___ भगवन् ! अभिनव (तत्काल उत्पद्यमान) वनस्पतिकायिक जीव कितने समय में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! प्रत्युत्पन्नवनस्पतिकायिकों के लिए जघन्य और उत्कृष्ट दोनों पदों में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ये इतने समय में निर्लेप हो सकते हैं। इन जीवों की निर्लेपना नहीं हो सकती। (क्योंकि ये अनन्तानन्त हैं / ) भगवन् ! प्रत्युत्पन्नवसकायिक जीव कितने काल में निर्लेप हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य पद में सागरोपम शतपृथक्त्व और उत्कृष्ट पद में भी सागरोपम शतपृथक्त्व काल में निर्लेप हो सकते हैं / जघन्यपद से उत्कृष्टपद में विशेषाधिकता समझनी चाहिए। विवेचन -निर्लेपता का अर्थ है-यदि प्रतिसमय एक-एक जीव का अपहार किया जाय तो कितने समय में वे जीव सबके सब अपहृत हो जायें अर्थात् वह प्राधारस्थान उन जीवों से खाली हो जाय / प्रत्युत्पन्न अर्थात् अभिनव उत्पद्यमान पृथ्वीकायिक जीवों का यदि प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार किया जाय तो कितने समय में वे सबके सब अपहृत हो सकेंगे, यह प्रश्न का प्राशय है। इसके उत्तर में कहा गया है कि जघन्य से अर्थात् जब एक समय में कम से कम उत्पन्न होते हैं, उस अपेक्षा से यदि प्रत्येक समय में एक-एक जीव अपहृत किया जावे तो उनके पूरे अपहरण होने में असंख्यात उत्सपिणियां और असंख्यात अवपिणियां समाप्त हो जावेंगी। इसी प्रकार उत्कृष्ट से एक ही काल में जब वे अधिक से अधिक उत्पन्न होते हैं उस अपेक्षा से भी यदि उनमें से एक-एक समय में एक-एक जीव का अपहार किया जावे तो भी उनके पूरे अपहरण में असंख्यात उत्सपिणियां और असंख्यात अवसर्पिणियां समाप्त हो जावेगी तब वे पूरे अपहृत होंगे। जघन्य पद वाले अभिनव उत्पद्यमान पृथ्वीकायिक जीवों की अपेक्षा जो उत्कृष्ट पदवी अभिनव पृथ्वीकायिक जीव उत्पन्न होते हैं वे असंख्यातगुण अधिक हैं। क्योंकि जघन्य पदोक्त असंख्यात से उत्कृष्ट पदोक्त असंख्यात असंख्यातगुण अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org