________________ 178] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सबसे थोड़े मनुष्य नपुंसक हैं, क्योंकि वे श्रेणी के असंख्येयभागवर्ती प्रदेशों की राशि-प्रमाण . उनसे नरयिक नपुंसक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि के प्रथम वर्गमूल को द्वितीय वर्गमूल से गुणित करने पर जो प्रदेशराशि होती है, उसके बराबर घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने प्रकाश प्रदेश हैं, उनके बराबर हैं / नैरयिक नपुसकों से तिर्यक्योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं, क्योंकि निगोद के जीव अनन्त हैं। (2) नैरयिक नपुसक भेद सम्बन्धी अल्पबहुत्व सबसे थोड़े सातवीं पृथ्वी के नैरयिक नपुंसक हैं, क्योंकि इनका प्रमाण प्राभ्यन्तर श्रेणी के असंख्येयभागवर्ती प्राकाशप्रदेश राशितुल्य है। उनसे छठी पृथ्वी के नैरयिक नपुसक असंख्येयगुण हैं, उनसे पांचवी पृथ्वी के नैरयिक नपु. असंख्येयगुण हैं, उनसे चौथी पृथ्वी के नैरयिक नप.असंख्येयगण हैं. उनसे तीसरी पृथ्वी के नैरयिक नपु. असंख्येयगुण हैं, उनसे दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपु. असंख्येयगुण हैं। क्योंकि ये सभी पूर्व-पूर्व नैरयिकों के परिमाण की हेतुभूत श्रेणी के असंख्येयभाग की अपेक्षा असंख्येयगुण असंख्येयगुण श्रेणी के भागवर्ती नभः-प्रदेशराशि प्रमाण हैं। दूसरी पृथ्वी के नैरयिक नपुसक असंख्येयगुण हैं, क्योंकि ये अंगुल मात्र प्रदेश की प्रदेशराशि के प्रथम वर्गमूल में / / द्वितीय वर्गमूल का गुणा करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है, उसके बराबर धनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने अाकाशप्रदेश है, उतने प्रमाण वाले हैं। प्रत्येक नरकपृथ्वी के पूर्व, उत्तर, पश्चिम दिशा के नैरयिक सर्वस्तोक हैं, उनसे दक्षिणदिशा के नैरयिक असंख्येयगुण हैं। पूर्व पूर्व की पृथ्वियों की दक्षिणदिशा के नैरयिक नपुसकों की अपेक्षा पश्चानुपूर्वी से आगे आगे की पृथ्वियों में उत्तर और पश्चिम दिशा में रहे हुए नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण अधिक हैं / प्रज्ञापनासूत्र में ऐसा ही कहां है / ' (3) तिर्यक्योनिक नपुसक विषय आल्पबषुत्व खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक नपुंसक सबसे थोड़े, क्योंकि वे प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणीगत प्राकाश प्रदेशराशि प्रमाण हैं। उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक नपुंसक संख्येयगुण हैं, क्योंकि वे बृहत्तर प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणिगत प्राकाश-प्रदेशराशिप्रमाण हैं। ___ उनसे जलचर नपुंसक संख्येयगुण है क्योंकि वे बृहत्तम प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणिगत प्रदेशराशिप्रमाण हैं। 1. दिसाणुवायेण सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइया पुरस्थिम पच्चत्थिम उत्तरेणं, दाहिणणं असंखेज्जगुणा...... इत्यादि / -प्रज्ञापनासूत्र पद 3 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org