________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: नवविध अल्पबहत्व] [191 उनसे स्थलचर तिर्यक्योनिक स्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे जलचर तिर्यक्योनिक पुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे जलचर तिर्यक्योनिक स्त्रियां संख्यातगुण हैं, उनसे वानव्यन्तर देवपुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे वानव्यन्तर देवियां संख्यातगुणी हैं, उनसे ज्योतिष्क देवपुरुष संख्यातगुण हैं, उनसे ज्योतिष्क देवास्त्रियां संख्यातगुण हैं, उनसे खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुसक संख्यातगुण हैं, उनसे स्थलचर ति.यो. नपुसक संख्यातगुण हैं, उनसे जलचर ति. यो. नपुसक संख्यातगुण हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय नपुसक विशेषाधिक हैं, उनसे श्रीन्द्रिय नपुसक विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय नपसक विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक एके. ति. यो. नपुसक असंख्यातगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक एके. ति. यो. नपुसक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक एके. ति. यो. नपुसक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक एके. ति. यो. नपुसक विशेषाधिक हैं, उनसे वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुसक अनन्तगुण हैं। विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में नौ अल्पबहुत्व को वक्तव्यता है / (1) प्रथम अल्पबहुत्व सामान्य से स्त्री, पुरुष और नपुसक को लेकर है। (2) दुसरा अल्पबहुत्व सामान्य से तिर्यक्योनिक स्त्री, पुरुष और नपुसक विषयक है। (3) तीसरा अल्पबहत्व सामान्य से मनुष्य स्त्री, पुरुष और नपुसक को लेकर है / (4) चौथा अल्पबहत्व सामान्य से देवी स्त्री, पुरुष और नारक नपुसक को लेकर है। देवों में नपुंसक नहीं होते और नारक केवल नपुंसक ही होते हैं, अतः देवस्त्री देवपुरुष के साथ नारकनपुसकों का अल्पबहुत्व बताया गया है। (5) पांचवें अल्पबहुत्व में सामान्य को अपेक्षा पूर्वोक्त सबका मिश्रित अल्पबहुत्व कहा है। (6) छठा अल्पबहुत्व विशेष को लेकर (भेदों की अपेक्षा से) तिर्यक्योनिक स्त्री, पुरुष नपुंसक विषयक है। (7) सातवां अल्पवहुत्व विशेष-भेदों की अपेक्षा से मनुष्य स्त्री, पुरुष, नपुसक के संबंध में है / (8) पाठवां अल्पबहुत्व विशेष की अपेक्षा से देव स्त्री, पुरुष और नारक नपुसकों को लेकर कहा गया है। (9) नौवां अल्पबहुत्व तिर्यंच और मनुष्य के स्त्री पुरुष एवं नपुंसक तथा देवों के स्त्री, पुरुष तथा नारक नपसकों का-सब विजातीय व्यक्तियों का मिश्रित अल्पबहुत्व है। मलयगिरिवृत्ति में यहाँ आठ ही अल्पबहुत्व का उल्लेख है। पहला अल्पबहुत्व जो सामान्य स्त्री-पुरुष-नपुसक को लेकर कहा गया है, उसका वत्ति में उल्लेख नहीं है / वृत्तिकार ने 'एयासिं गं भंते ! तिरिक्खजोणिय इत्थीण' पाठ से ही अल्पबहुत्व का प्रारंभ किया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org