________________ 272] जीवामीवाभिगमसूत्र कह णं भंते ! वल्लीमो कह वल्लिसया पणत्ता? गोयमा! चत्तारि वल्लीमओ चत्तारि वल्लिसया पण्णत्ता। का णं भंते ! लयाओ कति लयासया पण्णता? गोयमा ! अट्ठलयामओ, अट्ठलयासया पणत्ता। कइ णं भंते ! हरियकाया हरियकायसया पण्णता? गोयमा! तओ हरियकाया तो हरियकायसया पण्णता-फलसहस्सं च विटवडाणं, फलसहस्सं य गालबद्धाणं, ते सव्वे हरितकायमेव समोमरंति / ते एवं समणुगम्ममाणा समणुगम्ममाणा एवं समणुगाहिज्जमाणा 2, एवं सममुपेहिज्जमाणा 2, एवं समचितिज्जमाणा 2, एएसु चेव दोसुकाएसु समोयरंति, तंजहा–तसकाए चेव थावरकाए चेव / एवमेव सपुठवावरेणं आजीवियविट्टतेणं चउरासीति मातिकुलकोडी जोणिपमुहसयसहस्सा भवतीति मक्खाया। [98] हे भगवन् ! गंध (गंधांग) कितने कहे गये हैं ? हे भगवन् ! गन्धशत कितने हैं ? गौतम ! सात गंध (गंधांग) हैं और सात ही गन्धशत हैं। हे भगवन् ! फूलों की कितनी लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं ? गौतम ! फूलों की सोलह लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं, यथा—चार लाख जलज पुष्पों की, चार लाख स्थलज पुष्पों की, चार लाख महावृक्षों के फूलों की और चार लाख महागुल्मिक फूलों की। हे भगवन् ! वल्लियों और वल्लिशत कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वल्लियों के चार प्रकार हैं और चार वल्लिशत हैं / (वल्लियों के चार सौ अवान्तर हे भगवन् ! लताएँ कितनी हैं और लताशत कितने हैं ? गौतम ! आठ प्रकार की लताएं हैं और पाठ लताशत हैं / अर्थात् (पाठ सौ लता के अवान्तर भेद हैं / ) भगवन् ! हरितकाय कितने हैं और हरितकायशत कितने हैं ? गौतम ! हरितकाय तीन प्रकार के हैं और तीन ही हरितकायशत हैं। (अर्थात् हरितकाय की तीन सौ अवान्तर जातियां हैं / ) बिटबद्ध फल के हजार प्रकार और नालबद्ध फल के हजार प्रकार, ये सब हरितकाय में ही समाविष्ट हैं / इस प्रकार सूत्र के द्वारा स्वयं समझे जाने पर, दूसरों द्वारा सूत्र से समझाये जाने पर, अर्थालोचन द्वारा चिन्तन किये जाने पर और युक्तियों द्वारा पुनः युनः पर्यालोचन करने पर सब दो कायों में त्रसकाय और स्थावरकाय में समाविष्ट होते हैं / इस प्रकार पर्वापर विचारणा करने पर समस्त संसारी जीवों की (आजीविक दृष्टान्त से) चौरासी लाख योनिप्रमुख जातिकुलकोडी होती हैं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा है / विवेचन–यहाँ मूलपाठ में 'गंधा' पाठ है, यह पद के एकदेश में पदसमुदाय के उपचार से 'गंधाङ्ग' का वाचक समझना चाहिए / अर्थात् 'गंधांग' कितने हैं, यह प्रश्न का भावार्थ है / दूसरा प्रश्न है कि गन्धांग की कितनी सौ अवान्तर जातियां हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org