Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: गंधांग प्ररूपण] [273 / भगवान ने कहा-गौतम ! सात गंधाङ्ग हैं और सातसो गन्धांग की उपजातियां हैं। मोटे रूप में सात गंधांग इस प्रकार बताये हैं-१. मूल, 2. त्वक, 3. काष्ठ, 4. निर्यास, 5. पत्र, 6. फूल और 7. फल / मुस्ता, वालुका, उसीर प्रादि 'मूल' शब्द से गृहीत हुए हैं। सुवर्ण छाल आदि त्वक् हैं। चन्दन, अगुरु आदि काष्ठ से लिये गये हैं। कपूर आदि निर्यास हैं। पत्र से जातिपत्र, तमालपत्र, का ग्रहण है। पुष्प से प्रियंगु, नागर का ग्रहण है / फल से जायफल, इलायची, लौंग आदि का ग्रहण हुआ है / ये सात मोटे रूप में गंधांग हैं / ___ इन सात गंधांगों को पांच वर्ण से गुणित करने पर पैंतीस भेद हुए। ये सुरभिगंध वाले ही हैं अत: एक से गुणित करने पर (3541=35) पैतीस ही हुए। एक-एक वर्णभेद में द्रव्यभेद से पांच रस पाये जाते हैं अतः पूर्वोक्त 35 को 5 से गुणित करने पर 175 ( 354 5 = 175) हुए / वैसे स्पर्श पाठ होते हैं किन्त यथोक्तरूप गंधांगों में प्रशस्त स्पर्शरूप मद-लघ-शीत-उष्ण ये चार स्पर्श ही व्यवहार से परिगणित होते हैं प्रतएव पूर्वोक्त 175 भेदों को 4 से गुणित करने पर 700 (1754 4 =700) गंधांगों की अवान्तर जातियां होती हैं।' इसके पश्चात् पुष्पों की कुलकोटि के विषय में प्रश्न किया गया है। उत्तर में प्रभु ने कहा कि फूलों की 16 लाख कुलकोटियां हैं / जल में उत्पन्न होने वाले कमल आदि फूलों की चार लाख कुलकोटि हैं। कोरण्ट आदि स्थलज फूलों की चार लाख कुलकोटि (उपजातियां) हैं / महुबा आदि महावृक्षों के फूलों को चार लाख कुलकोटि हैं और जाती आदि महागुल्मों के फूलों की चार लाख कुलकोटी हैं / इस प्रकार फूलों की सोलह लाख कुलकोटि गिनाई हैं। वल्लियों के चार प्रकार और चारसौ उपजातियां कही हैं। मूल रूप से वल्लियों के चार प्रकार हैं और अवान्तर जातिभेद से चारसौ प्रकार हैं। चार प्रकारों की स्पष्टता उपलब्ध नहीं है / मूल टीकाकार ने भी इनकी स्पष्टता नहीं की है। लता के मूलभेद पाठ और उपजातियां पाठसौ हैं हरितकाय के मूलतः तीन प्रकार और अवान्तर तीनसो भेद हैं। हरितकाय तीन प्रकार के हैं--जलज, स्थलज और उभयज / प्रत्येक की सौ-सौ उपजातियां हैं, इसलिए हरितकाय के तीनसो अवान्तर भेद कहे हैं। बैंगन प्रादि बीट वाले फलों के हजार प्रकार कहे हैं और नालबद्ध फलों के भी हजार प्रकार हैं। ये सब तीन सौ ही प्रकार और अन्य भी तथाप्रकार के फलादि सब हरितकाय के अन्तर्गत पाते 1. मूलतयकट्टनिज्जासपत्तपुप्फफलमेव गंधंगा। वण्णादुत्तरभेया गंधरसया मुणेयब्वा // 1 // अस्य व्याख्यानरूपं गाथाद्वयंमुत्थासुवण्णछल्ली अगुरु वाला तमालपत्तं च / तह य पियंग जाईफलं च जाईए गंधगा // 1 // गुणणाए सत्तसया पंचहिं वण्णेहिं सुरभिगंधेणं / रसपणएणं तह फासेहि य चाहिं पसत्येहि // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org