________________ 276] [बीवानीवामिगमसूत्र भगवन् ! वे विमान कितने बड़े कहे गये हैं ? गौतम ! जैसी वक्तव्यता स्वस्तिक आदि विमानों की कही है, वैसी ही यहां कहना चाहिए / विशेषता यह है कि यहां वैसे पांच अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी देव का एक पदन्यास (एक विक्रम) कहना चाहिए / शेष वही कथन है / हे भगवन् ! क्या काम, कामावर्त यावत् कामोत्तरावतंसक विमान हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! जैसी वक्तव्यता स्वस्तिकादि विमानों की कही है वैसी ही कहना चाहिये / विशेषता यह है कि यहाँ वैसे सात अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी देव का एक विक्रम (पदन्यास) कहना चाहिए / शेष सब वही कथन है / हे भगवन् ! क्या विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित नाम के विमान हैं ? हों, गौतम ! हैं। भगवन ! वे विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! वही वक्तव्यता कहनी चाहिए यावत् यहाँ नौ अवकाशान्तर प्रमाण क्षेत्र किसी एक देव का एक पदन्यास कहना चाहिए / इस तीव्र और दिव्यगति से वह देव एक दिन, दो दिन उत्कृष्ट छह मास तक चलता रहे तो किन्ही विमानों के पार पहुंच सकता है और किन्ही विमानों के पार नहीं पहुंच सकता है / हे आयुष्मन् श्रमण ! इतने बड़े विमान वे कहे गये हैं। प्रथम तिर्यक्योनिक उद्देशक पूर्ण / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में विशेष नाम वाले विमानों के विषय में तथा उनके विस्तार के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हैं / “विमान' शब्द की व्युत्पत्ति वृत्तिकार ने इस प्रकार की है जहाँ वि-विशेषरूप से पुण्यशाली जीवों के द्वारा मन्यन्ते-तद्गत सुखों का अनुभव किया जाता है वे विमान हैं / ' विमानों के नामों में यहाँ प्रथम स्वस्तिक प्रादि नाम कहे गये हैं, जबकि वृत्तिकार मलयगिरि ने पहले अचि, अचिरावर्त आदि पाठ मानकर व्याख्या की है। उन्होंने स्वस्तिक, स्वस्तिकावर्त आदि नामों का उल्लेख दूसरे नम्बर पर किया है। इस प्रकार नाम के क्रम में अन्तर है / वक्तव्यता एक ही है। विमानों की महत्ता को बताने के लिए देव की उपमा का सहारा लिया गया है। जैसे कोई देव सर्वोत्कृष्ट दिन में जितने क्षेत्र में सूर्य उदित होता है और जितने क्षेत्र में वह अस्त होता है इतने क्षेत्र को अवकाशान्तर कहा जाता है, ऐसे तीन अवकाशान्तर जितने क्षेत्र को (वह देव) एक पदन्यास से पार कर लेता है / इस प्रकार की उत्कृष्ट, त्वरित और दिव्यगति से लगातार एक दिन, दो दिन और उत्कृष्ट छह मास तक चलता रहे तो भी वह किसी विमान के पार पहुंच जाता है और किसी विमान को पार नहीं कर सकता है। इतने बड़े वे विमान हैं। 1. विशेषतः पुण्यप्राणिभिमन्यन्ते-तदगतसौख्यानुभवनेनानुभयन्ते इति विमानानि / Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal use only www.jainelibrary.org