________________ तृतीय प्रतिपत्ति : गंधांग प्ररूपन] [271 कि इनकी स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। ये मरकर यदि नरक में जावें तो पांचवीं पृथ्वी तक जाते हैं / इनको दस लाख जातिकुलकोडी हैं। चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थक्योनिकों की पृच्छा ? गौतम ! इनका योनिसंग्रह दो प्रकार का है, यथा जरायुज (पोतज) और समूच्छिम / जरायुज तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक / जो सम्मूच्छिम हैं वे सब नपुसक हैं / हे भगवन् ! उन जीवों के कितनी लेश्याएँ कही गई हैं, इत्यादि सब खेचरों की तरह कहना चाहिए। विशेषता इस प्रकार है---इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। मरकर यदि ये नरक में जावें तो चौथी नरकपृथ्वी तक जाते हैं। इनकी दस लाख जातिकुलकोडी हैं। जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों की पृच्छा ? गौतम ! जैसे भुजपरिसो का कहा वैसे कहना / विशेषता यह है कि ये मरकर यदि नरक में जा तो सप्तम पृथ्वी तक जाते हैं / इनकी साढ़े बारह लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं। हे भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी कही गई हैं ? गौतम ! नौ लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं। हे भगवन् ! श्रीन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! आठ लाख जातिकुलकोडी कही हैं। भगवन् ! द्वीन्द्रियों की कितनी जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! सात लाख जा विवेचन–अन्य सब कथन पाठसिद्ध ही.है। केवल चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यकयोनिकों का योनिसंग्रह दो प्रकार का कहा है, यथा--पोयया य सम्मुच्छिमा य / यहाँ पोतज में अण्डजों से भिन्न जितने भी जरायज या अजरायज गर्भज जीव हैं उनका समावेश कर दिया गया है। अतएव दो प्रकार का योनिसंग्रह कहा है, अन्यथा गौ आदि जरायुज हैं और सर्पादि अण्डज हैं-ये दो प्रकार और एक सम्मूच्छिम यों तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा जाता / लेकिन यहां दो ही प्रकार का कहा है, अतएव पोतज में जरायुज अजरायुज सब गर्भजों का समावेश समझना चाहिए। यहाँ तक योनि जातीय जातिकुलकोटि का कथन किया, अब भिन्न जातीय का अवसर प्राप्त है अतएव भिन्न जातीय गंधांगों का प्ररूपण करते हैंगंधांग प्ररूपरण 98. कह गं भंते ! गंधा पण्णता? कइ णं भंते ! गंधसया पण्णता? गोयमा ! सत्तगंधा सत्तगंधसया पणत्ता। कह गंभंते ! पुफ्फजाइ-कुलकोडोजोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णता? गोयमा! सोलस पुप्फजातिकुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पण्णता, तंजहा-चत्तारि जलयाणं, चत्तारि थलयाणं, चत्तारि महारक्खियाणं, चत्तारि महागुम्मियाणं। पण या अजर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org