________________ 270 बीवानीवाभिगमसूत्र 97. [2] भयगपरिसप्पथलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविहे जोणीसंगहे पणते ? गोयमा ! तिविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तंजहा-अंग्या, पोयया समुच्छिमा; एवं जहा खहयराणं तहेव; जाणत्तं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुन्यकोडी / उव्यट्टित्ता दोच्छ पुढवि गच्छंति, णव जातिकुलकोडी जोणीपमुह सयसहस्सा भवंतीति मक्खायं, सेसं तहेव। उरगपरिसप्पथलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! पुच्छा, जहेव भयगपरिसप्पाणं तहेव, णवरं ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुटवकोडी, उबट्टित्ता जाव पंचमि पुढवि गच्छंति, दसजातिकुलकोडी। चउप्पयथलयर पंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा! दुविहे पणत्ते, तंजहाजराउया (पोयया) य सम्मुच्छिमा य / से कि तं जराउया (पोयया) ? तिविहा पण्णता, तंजहा-इत्थी, पुरिसा, नपुंसगा। तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते सम्वे नपुसया। तेसि णं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पण्णसाम्रो ? से जहा परखीणं / णाणत-लिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिणि पलिनोवमाई; उव्यट्टिसा चउत्यि पुढवि गच्छंति, बस जातिकुलकोडी। जलयरपंचिदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, जहा भयगपरिसप्पाणं, गवरं उबट्टित्ता जाव अहेसत्तमं पुढवि, अद्धतेरस जातिकुलकोडी जोणिपमुहसयसहस्सा पण्णता। चरिबियाणं भंते ! कइ जातिकुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पण्णता? गोयमा ! नव जाइकुलकोडी जोणिपमुहसयसहस्सा समक्खाया। तेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा ! अट्ठ जाइकुल जाव समक्खाया / बेइंबियाणं भंते ! कह जाइकुल पुच्छा, गोयमा ! सत्त जाइकुलकोडी जोणिपमुहसयसहस्सा, पण्णत्ता। [97] (2) हे भगवन् ! भुजपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कितने प्रकार का योनिसंग्रह कहा गया है ? गौतम ! तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा गया है, यथा अण्डज, पोतज और सम्मूच्छिम / इस तरह जैसा खेचरों में कहा वैसा, यहाँ भी कहना चाहिए। विशेषता यह है---इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है / ये मरकर चारों गति में जाते हैं / नरक में जाते हैं तो दूसरी पृथ्वी तक जाते हैं / इनकी नौ लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं / शेष पूर्ववत् / भगवन् ! उरपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? इत्यादि प्रश्न कहना चाहिए। गौतम ! जैसे भुजपरिसर्प का कथन किया, वैसा यहाँ भी कहना चाहिए / विशेषता यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org