________________ 268] [जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा! तिविहा थि। ते णं भंते ! जीवा कि सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्ता वि अणागारोबउसा वि। ते णं भंते ! जीवा कमओ उवधज्जति, कि नेरहरहितो उवषज्जति, तिरिक्सजोणिएहि उववज्जति ? पुच्छा। . गोयमा! असंखेज्ज वासाउय अकम्मभूमग अंतरदीवग वज्जेहिंतो उववज्जति / तेसि णं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? गोयमा! जहणणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जा भागं / तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाया पण्णता? गोयमा ! पंच समुग्घाया पण्णता, तंजहा-वेदणासमुग्घाए जाव तेयासमुग्याए / ते णं भंते ! जीवा मारणांतियसमुग्धाएणं कि समोहया मरंति, असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति / ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहि गच्छति ? कहिं उववजंति ? कि नेरइएसु उबवज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति / पुच्छा ? गोयमा ! एवं उज्ववट्टणा भाणियन्वा जहा बक्कंतीए तहेव / तेसिं गं भंते ! जीवाणं कइ जातिकुलकोडिजोणिपमुह सयसहस्सा पण्णता ? गोयमा ! बारस जातिकुलकोडिजोणिपमुह सयसहस्सा / [97] (1) हे भगवन् ! इन जीवों (पक्षियों) के कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! छह लेश्याएं हो सकती हैं-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या / (द्रव्य और भाव से छहों लेश्याओं का सम्भव है, क्योंकि वैसे परिणाम हो सकते हैं / ) हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं। गौतम ! सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं और मिश्रदृष्टि भी हैं। भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं / जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे दो या तीन अज्ञान वाले हैं। भगवन् ! वे जीव क्या मनयोगी हैं, वचनयोगी हैं, काययोगी हैं ? गौतम ! वे तीनों योग वाले हैं। भगवन् ! वे जीव साकार-उपयोग वाले हैं या अनाकार-उपयोग वाले हैं ? गौतम ! साकार-उपयोग वाले भी हैं और अनाकार-उपयोग वाले भी हैं। भगवन् ! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से आते हैं या तिर्यक्योनि से पाते हैं इत्यादि प्रश्न कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org