________________ 266] हनीवाजीवाभिगमसूत्र वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त द्वीन्द्रिय और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय। यह द्वीन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का कथन हुआ। इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों तक कहना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? वे तीन प्रकार के हैं, यथा-जलचर पंचेन्द्रिय ति., स्थलचर पंचेन्द्रिय ति. और खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक। जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यकयोनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिथंच और गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च / सम्मूछिम जलचर पंचे. ति. क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्त संमूर्छिम और अपर्याप्त सम्मूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक / यह संम्मूछिम जलचरों का कथन हुआ। गर्भव्युत्क्रांतिक जलचर पंचेन्द्रिय ति. क्या हैं ? वे दो प्रकार के है, यथा--पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर . पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च / यह गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचरों का वर्णन हुआ। स्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय और परिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक / चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूच्छिम चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय और गर्भव्युत्क्रांतिक चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च / जैसा जलचरों के विषय में कहा वैसे चार भेद इनके भी जानने चाहिए / यह चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन हुआ। परिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-उरगपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच और भुजगपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच / उरगपरिसर्पस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? / वे दो प्रकार के हैं, यथा-जैसे जलचरों के चार भेद कहे वैसे यहाँ भी कहने चाहिए। इसी तरह भुजगपरिसॉं के भी चार भेद कहने चाहिए। यह भुजगपरिसों का कथन हुआ। इसके साथ ही स्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन भी पूरा हुआ। खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक क्या हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org