________________ तृतीय प्रतिपति : तिर्यग् अधिकार] [267 वे दो प्रकार के हैं, यथा-सम्मूछिम खेचर पं. ति. और गर्भव्युत्क्रांतिक खेचर पं. तिर्यक्योनिक। सम्मूछिम खेचर पं. ति. क्या हैं ? वे दो प्रकार के हैं, यथा-पर्याप्तसम्मूछिम खेचर पं. ति. और अपर्याप्तसम्मूछिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक / इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिकों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। .. हे भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? ___ गौतम ! तीन प्रकार का योनि-संग्रह कहा गया है, यथा--अण्डज, पोतज और सम्मूछिम' / अण्डज तीन प्रकार के कहे गये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक / पोतज तीन प्रकार के हैं स्त्री, पुरुष और नपुंसक / सम्मूर्छिम सब नपुंसक होते हैं / विवेचन-तिर्यक्योनिकों के भेद पाठसिद्ध ही हैं, अतएव स्पष्टता की आवश्यकता नहीं है। केवल योनिसंग्रह की स्पष्टता इस प्रकार है __ योनिसंग्रह का अर्थ है-योनि (जन्म) को लेकर किया गया भेद / पक्षियों के जन्म तीन प्रकार के हैं अण्ड से होने वाले, यथा मोर आदि; पोत से होने वाले वागुली आदि और सम्मूछिम जन्म वाले पक्षी हैं-खजरीट आदि / वैसे सामान्यतया चार प्रकार का योनिसंग्रह है-१. जरायुज 2. अण्डज 2. पोतज और 4. सम्मूछिम / पक्षियों में जरायुज की प्रसिद्धि नहीं है। फिर भी अण्डज को छोड़कर शेष सब जरायुज अजरायुज गर्भजों का पोतज में समावेश करने पर तीन प्रकार का योनिसंग्रह संगत होता है। अण्डज तीनों प्रकार के हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक / पोतज भी तीनों लिंग वाले हैं। सम्मूछिम जन्म वाले नपुंसक ही होते हैं, क्योंकि उनके नपुंसकवेद का उदय अवश्य ही होता है। द्वारप्ररूपणा 97. [1] एएसि णं भंते ! जीवाणं कतिलेसानो पण्णताओं ? / गोयमा ! छल्लेसाओ पण्णत्ताओ, तंजहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा। ते गं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी मिच्छाविट्ठी, सम्मामिच्छविट्ठी? गोयमा ! सम्मविट्ठी वि मिच्छविट्ठी वि सम्मामिच्छविट्ठी वि। ते णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी? गोयमा ! णाणी कि, अण्णाणी वि, तिष्णि णाणाइं तिणि अण्णाणाई भयणाए। ते णं भंते ! जीवा कि मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी ? अण्डज को छोड़कर शेष सब जरायु वाले या बिना जरायु वाले गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रियों का पोतज में समावेश किया गया है। अतएव तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा है, चार प्रकार का नहीं। वैसे पक्षियों में जरायुज होते ही नहीं हैं, अतएव यहां तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org