________________ 256] [जीवाजीवाभिगमसूत्र विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में दो महत्त्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर हैं। पहला प्रश्न है कि भगवन् ! उक्त प्रकार के नरकावासों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पहले उत्पन्न हुए हैं क्या? भगवान् ने कहा-हाँ गौतम ! सब संसारी जीव इन नरकावासों में से प्रत्येक में अनेक बार अथवा अनन्त बार पूर्व में उत्पन्न हो चुके हैं। संसार अनादिकाल से है और अनादिकाल से सब संसारी जीव जन्म-मरण करते चले आ रहे हैं / अतएव वे बहुत बार अथवा अनन्त बार इन नरकावासों में उत्पन्न हुए हैं। कहा है ___'न सा जाई न सा जोणी जत्थ जीवो न जायई' ऐसी कोई जाति और ऐसी कोई योनि नहीं है जहाँ इस जीव ने अनन्तबार जन्म-मरण न किया हो / मूल पाठ में प्राण, भूत, जीव और सत्त्व शब्द आये हैं, इनका स्पष्टीकरण प्राचार्यों ने इस प्रकार किया है _ 'द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का ग्रहण 'प्राण' शब्द से, वनस्पति का ग्रहण 'भूत' शब्द से, पंचेन्द्रियों का ग्रहण 'जीव' शब्द से, शेष रहे पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय और वायुकाय के जीव 'सत्त्व' शब्द से गृहीत होते हैं / '' प्रस्तुत सूत्र में 'पुढवीकाइयात्ताए जाव' वणस्सइकाइयत्ताए' पाठ है। इससे सामान्यतया पृथ्वीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों का ग्रहण होता है। यहाँ रत्नप्रभादि में तत् तत् रूप में उत्पन्न होने वाले जीवों के विषय में पृच्छा है। बादर तेजस्कायिक के रूप में जीव इन नरकपृथ्वियों में उत्पन्न नहीं होते अतएव उनको छोड़कर शेष के विषय में यह समझना चाहिए। वृत्तिकार ने भी ऐसा ही उल्लेख किया है। अतएव मूलार्थ में ऐसा ही अर्थ किया है। दूसरा प्रश्न यह कि क्या वे रत्नप्रभादि के पर्यन्तवर्ती पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीव महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महापाश्रव वाले और महावेदना वाले हैं ? भगवान् ने कहाहाँ गौतम ! वे महाकर्म वाले यावत् महावेदना वाले हैं। प्रस्तुत प्रश्न का उद्भव इस शंका से होता है कि वे जीव अभी एकेन्द्रिय अवस्था में हैं। अभी वे इस स्थिति में नहीं हैं और न ऐसे साधन उनके पास हैं जिनसे वे महा पापकर्म और महारम्भ आदि कर सकें तो वे महाकर्म, महाक्रिया, महापाश्रव और महावेदना वाले कैसे हैं ? इसका समाधान करते हुए कहा गया है कि उन जीवों ने पूर्वजन्म में जो प्राणातिपात आदि महाक्रिया की है उसके अध्यवसायों से वे निवृत्त नहीं हुए हैं / अतएव वे वर्तमान में भी महाक्रिया वाले हैं। महाक्रिया का हेतु महामाश्रव है। वह महाआश्रव भी पूर्वजन्म में उनके था इससे वे निवृत्त नहीं हुए अतएव 1.. प्राणा द्वित्रिचतुः प्रोक्ताः भूताश्च तरब: स्मृताः। जीवा: पंचेन्द्रिया ज्ञेयाः शेषा: सत्त्वा उदीरिताः / / 2. 'पृथ्वीकायिकतथा अप्कायिकतया वायुकायिकतया वनस्पतिकायिकतया नैरयिकतया उत्पन्नाः उत्पन्नपूर्वाः ? भगवानाह-हंतेत्यादि। -मलयवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org