Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : रत्नप्रभावि में द्रव्यों की सत्ता] [203 भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अपबहुलकाण्ड कितनी मोटाई का है ? गौतम ! वह अस्सी हजार योजन की मोटाई का है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधि कितना मोटा है ? गौतम ! वह बीस हजार योजन की मोटाई का है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनवात कितना मोटा है ? गौतम ! वह असंख्यात हजार योजन का मोटा है। इसी प्रकार तनुवात भी और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाले हैं। भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधि कितना मोटा है ? गौतम ! बीस हजार योजन का है। भगवन् ! शर्कराप्रभा का घनवात कितना मोटा है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है। इसी प्रकार तनुवात और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाले हैं। जैसी शर्कराप्रभा के घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश की मोटाई कही है, वही शेष सब पृथ्वियों की (सातवीं पृथ्वी तक) जाननी चाहिए। विवेचन-पहले नरकपृथ्वियों का बाहल्य कहा गया था। इस सूत्र में रत्नप्रभापृथ्वी के तीन काण्डों का और घनोदधि, धनवात, तनुवात तथा प्राकाश का बाहल्य बताया गया है। काण्ड केवल रत्नप्रभापृथ्वी में ही हैं। खरकाण्ड के सोलह विभाग हैं और प्रत्येक विभाग का बाहल्य एक हजार योजन का बताया है। सोलह काण्डों का कूल बाहल्य सोलह हजार योजन का है। पंकबहल दूसरे काण्ड का बाहल्य चौरासी हजार और अपबहुल तीसरे काण्ड का बाहल्य अस्सी हजार योजन है। इस प्रकार रत्नप्रभा के तीनों काण्डों का बाहल्य मिलाने से रत्नप्रभा की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। प्रत्येक पृथ्वी के नीचे क्रमशः घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश है। अतः उनका बाहल्य भी बता दिया गया है। घनोदधि का बाहल्य बीस हजार योजन का है / धनवात का बाहल्य असंख्यात हजार योजन का है / तनुवात और आकाश का बाहल्य भी प्रत्येक असंख्यात हजार योजन का है। सभी पृथ्वियों के घनोदधि आदि का बाहल्य समान है। रत्नप्रभादि में द्रव्यों की सत्ता 73. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभापुढवीए असीउत्तर जोयणसयसहस्सबाहल्लाए खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणीए अत्थि दवाई वग्णओ कालनीललोहितहालिहसुक्किलाई, गंधनो, सुरभिगंवाई दुडिभगंधाई, रसनो तितकड़यकसायबिलमहुराई, फासओ कक्खड-मउय-गरुय-लहु-सीय-उसिणणिद्ध-लुक्खाई, संठाणओ परिमंडल-वट्ट-तंस-चउरंस--आयय संठाणपरिणयाइं अन्नमनबद्धाइं अन्नमन्त्रपुट्ठाई, अन्नमनओगाढाई, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धाइं अण्णमण्णघडताए चिट्ठन्ति ? हंता अस्थि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org