________________ 206] [जीवाजीवाभिगमसूत्र नरकों का संस्थान 74. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवो किसंठिता पण्णता? गोयमा ! मल्लरिसंठिया पण्णत्ता। इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए खरकंडे किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते। इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए रयणकंडे किंसंठिए पण्णते? गोयमा! मल्लरिसंठिए पण्णत्ते / एवं जाव रिठे। एवं पंकबहुले वि एवं आवबहुले वि, घणोधी कि, घणवाए वि, तणुवाए वि, ओवासंतरे वि / सम्वे मल्लरिसंठिए पण्णत्ते / सक्करप्पभा णं भंते ! पुढवी किंसंठिया पण्णता? गोयमा ! मल्लरिसंठिए पण्णत्ते / एवं जाव ओवासंतरे, जहा सक्करप्पभाए वत्तव्यया एवं जाव अहेसत्तमाए वि। [74] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के प्राकार का है / अर्थात् विस्तृत वलयाकार है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वो के खरकांड का कैसा आकार है ? गौतम ! झालर के ग्राकार का है। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के रत्नकाण्ड का क्या प्राकार है ? गौतम ! झालर के आकार का है। इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक कहना चाहिए / इसी तरह पंकबहुलकांड, अपबहुलकांड, घनोदधि, धनवात, तनुवात और अवकाशान्तर भी सब झालर के प्रकार के हैं। भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का प्राकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है। भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के घनोदधि का आकार के सा है ? गौतम ! झालर के आकार का है। इसी प्रकार अवकाशान्तर तक कहना चाहिए। शर्कराप्रभा की वक्तव्यता के अनुसार शेष पृथ्वियों की अर्थात् सातवीं पृथ्वी तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। सातों पृथ्वियों की प्रलोक से दूरी 75. इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवोए पुरथिमिल्लाओ उवरिमंताओ केवइयं अबाधाए लोयंते पण्णते? गोयमा ! दुवालसहि जोयहि अबाधाए लोयंते पण्णत्ते, एवं दाहिणिल्लाओ, पच्चत्थिमिल्लाओ, उत्तरिल्लाओ। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.