________________ 204] [जीवाजीवाभिगमसूत्र इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए खरकंडस्स सोलसजायणसहस्सबाहल्लस्स खेतच्छेएणं छिज्जमाणस्स अस्थि दव्वाई वण्णओ काल जाय परिणयाई। हंता अस्थि / ___ इमोसे गं भंते ! रयणप्पमाएपुढवीए रयणनामगस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेतच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव जाव हंता अस्थि / एवं जाव रिट्ठस्स। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाएपुढवीए पंकबहुलस्स कंडस्स चउरासीति जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएण छिज्जमाणस्स० तं चेव / एवं जाव बहुलस्स वि असीतिजोयणसहस्सबाहल्लस्स। इमोसे गं भंते / रयणप्पभापुढवीए घणोदधिस्स वीसं जोयणसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएणं तहेव / एवं घणवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्सबाहल्लस्स तहेव / ओवासंतरस्स वि तं चेव / ___ सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए बसीसुत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लस्स खेत्तच्छेएण छिज्जमाणीए अस्थि दवाई वणो जाव घडताए चिट्ठति ? हंता अस्थि / एवं घणोवहिस्स बीसजोयणसहस्सबाहल्लस्स घणवातस्स असंखेज्जजोयणसहस्सबाहल्लस्स, एवं जाव ओवासंतरस्स / जहा सक्करप्पमाए एवं जाव अहेसत्तमाए। [73] भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली और प्रतर-काण्डादि रूप में (बुद्धि द्वारा) विभक्त इस रत्नप्रभापृथ्वी में वर्ण से काले-नीले-लाल-पीले और सफेद, गंध से सुरभिगंध वाले और दुर्गन्ध वाले, रस से तिक्त-कटुक-कसैले-खट्टे-मीठे तथा स्पर्श से कठोर-कोमल-भारी-हल्केशीत-उष्ण-स्निग्ध और रूक्ष, संस्थान से परिमंडल (लड्डू की तरह गोल), वृत्त (चूडी के समान गोल), त्रिकोण, चतुष्कोण और पायात (लम्बे) रूप में परिणत द्रव्य एक-दूसरे से बंधे हुए, एक दूसरे से स्पृष्ट-छुए हुए, एक दूसरे में अवगाढ़, एक दूसरे से स्नेह द्वारा प्रतिबद्ध और एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के सोलह हजार योजन बाहल्य वाले और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त खरकांड में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श और संस्थान रूप में परिणत द्रव्य यावत् एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या? हाँ, गौतम ! हैं। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि रूप में बुद्धिद्वारा विभक्त रत्न नामक काण्ड में पूर्व विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य हैं क्या? हाँ, गौतम ! हैं। इसी प्रकार रिष्ट नामक काण्ड तक कहना चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पंकबहुल काण्ड में जो चौरासी हजार योजन बाहल्य वाला और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त है, (उसमें) पूर्ववणित द्रव्यादि हैं क्या ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org