________________ 232] [जीवावीवाभिगमसूत्र नरक तक, उरग पांचवीं नरक तक, स्त्रियां छठी नरक तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवीं नरक तक जाते हैं। विवेचन-उपपात का वर्णन करते हए इस सत्र में जो दो गाथाएं दी गई हैं, उनका अर्थ यह समझना चाहिए कि असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक ही जाते हैं, न कि असंज्ञीजीव ही प्रथम नरक में जाते हैं / इसी तरह सरीसृप--गोधा नकुल आदि दूसरी पृथ्वी तक ही जाते हैं, न कि सरीसृप ही दूसरी नरक में जाते हैं। पक्षी तीसरी नरक तक जाते हैं, न कि पक्षी ही तीसरी नरक में जाते हैं। इसी तरह आगे भी समझना चाहिए। शर्कराप्रभा आदि नरकपृथ्वी को लेकर पाठ इस प्रकार होगा 'सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया कि असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो प्रसन्नीहिती उववज्जति सरीसिवेहिंतो उवबज्जति जाव मच्छमणस्सेहितो उववज्जति / बालुयप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया कि असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्जति ? गोयमा ! नो असण्णीहिंतो उववज्जति नो सरीसिवेहितो उववज्जति, पक्खीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुस्सेहिंतो उववज्जति / ' उक्त रीति से उत्तर-उत्तर पृथ्वी में पूर्व-पूर्व के प्रतिषेध सहित उत्तरप्रतिषेध तब तक कहना चाहिए जब तक कि सप्तम पृथ्वी में स्त्री का भी प्रतिषेध हो जाए। वह पाठ इस प्रकार होगा'अहेसत्तमाए णं भंते पुढवीए नेरइया कि असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुस्सेहितो उववज्जति ? गोयमा ! नो असण्णीहितो उववज्जति जाव नो इत्थीहिंतो उववज्जति, मच्छमणुस्सेहितो उववज्जति / ' संख्याद्वार 86. [2] इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुडवीए औरइया एक्कसमयेणं केवइया उववज्जति ? गोयमा ! जहण्णणं एक्कोवा वो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उबवज्जंति, एवं जाव अहेसत्तमाए। इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइकालेणं अवहिया सिया ? गोयमा ! ते णं असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा अबहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसपिणीहि अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया / जाव अहेसत्तमाए। [86] (2) हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org