________________ तृतीय प्रतियत्ति : नरकोंमें पृथ्वी आदि का स्पर्शादि प्ररूपण] [253 . 5. धूमप्रभा जघन्य उत्कृष्ट 10 सागरोपम 115 सागरोपम प्रथम प्रस्तट दूसरा , तीसरा , चौथा / पांचवां , 125 , 144 , 125 142 // , . 17 सागरोपम प्रतिपूर्ण 6. तमःप्रभा जघन्य उत्कृष्ट १७सागरोपम प्रथम प्रस्तट द्वितीय, तृतीय , 181 सागरोपम 207 सागरोपम 22 सागरोपम प्रतिपूर्ण 3. तमस्तमःप्रमा जघन्य उत्कृष्ट तंतीस सागरोपम एक ही प्रस्तट हे 22 सागरोपम उद्वर्तना प्रज्ञापना के व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार उद्वर्तना कहनी चाहिए / वह बहुत विस्तृत है अतः वहीं से जानना चाहिए / संक्षेप में भावार्थ यह है कि प्रथम नरक पृथ्वी से लेकर छठी नरक पृथ्वी के नैरयिक वहाँ से सीधे निकलकर ने रयिक, देव, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संमूछिम पंचेन्द्रिय और असंख्येय वर्षायु वाले तिर्यंच मनुष्य को छोड़कर शेष तिर्यञ्चों और मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। सप्तम पृथ्वी नैरयिक गर्भज तिर्यक् पंचेन्द्रियों में ही उत्पन्न होते हैं, शेष में नहीं। नरकों में पृथ्वी आदि का स्पर्शादि प्ररूपण 2. इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफासं पच्चणुम्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिटुंजाव अमणामं / एवं जाव अहेसत्तमाए / इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं आउफासं पच्चणम्भवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिटुंजाव अमणामं / एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं जाव वणप्फइफासं अहेसत्तमाए पुढवीए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org