________________ दूसरे में छठे में 1 हाथ तृतीय प्रतिपत्ति : अवगाहनाद्वार] [237 इसी प्रकार बालुकाप्रभा के प्रथम प्रस्तट में वही अवगाहना है जो दूसरी पृथ्वी के अन्तिम प्रस्तट में है-अर्थात् 15 धनुष 2 हाथ और 12 अंगुल / इसके बाद प्रत्येक प्रस्तट में 7 हाथ 19 / / अंगुल की वृद्धि कहनी चाहिए। उसका प्रमाण इस प्रकार होगापहले प्रस्तट में 15 धनुष 2 हाथ 12 अंगुल 17 धनुष 2 हाथ 7 // अंगुल तीसरे में 16 धनुष 2 हाथ 3 अंगुल चौथे में 21 धनुष 1 हाथ 22 / / अंगुल पांचवें में 23 धनुष 1 हाथ 18 अंगुल 25 धनुष 1 हाथ 13 / / अंगुल सातवें में 27 धनुष १हाथ 9 अंगुल पाठवें में 29 धनुष 1 हाथ 4 // अंगुल नौवें में 31 धनुष 0 अंगुल पंकप्रभा में सात प्रस्तट हैं। उनमें से प्रथम प्रस्तट में वही अवगाहना है जो पूर्व को बालुकाप्रभा के नौवें प्रस्तट की है / इसके आगे प्रत्येक में 5 धनुष 20 अंगुल की वृद्धि कहनी चाहिए / प्रत्येक प्रस्तट की अवहगाहना का प्रमाण इस प्रकार होगापहले प्रस्तट में 31 धनुष 1 हाथ दूसरे में 36 धनुष 1 हाथ 20 अंगुल तीसरे में 41 धनुष 2 हाथ चौथे में 46 धनुष 3 हाथ 12 अंगुल पांचवें में 52 धनुष 0 हाथ 57 धनुष 1 हाथ सातवें में 62 धनुष 2 हाथ 0 अंगुल धूमप्रभा के पांच प्रस्तट हैं। प्रथम प्रस्तट में वही अवगाहना है जो पूर्व की पृथ्वी के अन्तिम प्रस्तट की है। इसके बाद 15 धनुष 2 // हाथ प्रत्येक प्रस्तट में वृद्धि कहनी चाहिए / वह प्रमाण इस प्रकार होगापहले प्रस्तट में 62 धनुष 2 हाथ 78 धनुष 1 वितस्ति(वेत–प्राधा हाथ) तीसरे में 93 धनुष 3 हाथ चौथे में 109 धनुष 1 हाथ 1 वितस्ति पांचवें में 125 धनुष तमःप्रभापृथ्वी के तीन प्रस्तट हैं / प्रथम प्रस्तट की वही अवगाहना है जो इसके पूर्व की पृथ्वी के अन्तिम प्रस्तट की है / इसके पश्चात् प्रत्येक प्रस्तट में 62 / / धनुष की वृद्धि कहनी चाहिए। वह प्रमाण इस प्रकार होता है 16 अंगुल 8 अंगुल 4 अंगुल छठे में दूसरे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org