________________ 238] [जीवाजीवाभिगमसूत्र दूसरे में पहले प्रस्तट में 125 धनुष 187 / / धनुष . तीसरे में 250 धनुष तमस्तमा:पृथ्वी में प्रस्तट नहीं है। उनकी भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना 500 धनुष की है उत्तरवैक्रिय एक हजार योजन है / संहनन-संस्थान-द्वार 87. [1] इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए मेरइयाणं सरीरया किसंघयणी पण्णता ? गोयमा ! छण्हं संधयणाणं असंघयणा, गेवट्ठी, गेव छिरा, णवि हारु, व संघयणमस्थि, जे पोग्गला अणिटा जाव अमणामा ते तेसि सरीरसंघायत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। [87] (1) हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संहनन क्या है ? गौतम ! छह प्रकार के संहननों में से उनके कोई संहनन नहीं है, क्योंकि उनके शरीर में हड्डियां नहीं हैं, शिराएं नहीं हैं, स्नायु नहीं हैं। जो पुद्गल अनिष्ट और अमणाम होते हैं वे उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्बी तक कहना चाहिए। .. 87. [2] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरा किसंठिया पण्णता ? - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तंजहा भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य / तत्थ णं जे ते मवधारणिज्जा ते हंडसंठिया पणत्ता, तस्थ गंजे ते उत्तरवेउम्विया ते वि हुंडसंठिया पण्णता / एवं जाव आहेसत्तमाए / इमीसे णं भंते ! रयणप्पमाए पुढवीए रइयाणं सरीरगा केरिसया वण्णेनं पण्णता? गोयमा ! काला कालोमासा जाब परमकिण्हा वम्णेणं पण्णत्ता / एवं जाव अहेसत्तमाए। इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया गंधेणं पण्णता? गोयमा ! से जहानामए अहिमडेइ वा तं चेव जाव अहेसत्तमा। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं सरीरया केरिसया फासेणं पण्णता ? गोयमा! फुडितच्छविविच्छविया खरफरस झामभुसिरा फासेणं पण्णत्ता। एवं भाव महेसत्तमा / [87] (2) हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के शरीरों का संस्थान कैसा है ? गौतम! उनके संस्थान दो प्रकार के हैं-भवधारणीय और उत्तरक्रिय। भवधारणीय की अपेक्षा वे हुंडकसंस्थान वाले हैं और उत्तरवैक्रिय की अपेक्षा भी वे हुंडकसंस्थान वाले ही हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के संस्थान हैं। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरयिकों के शरीर वर्ण की अपेक्षा कैसे कहे गये हैं ? गौतम! काले, काली छाया (कान्ति) वाले यावत् अत्यन्त काले कहे गये हैं। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों का वर्ण जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org