________________ तृतीव प्रतिपति : अवगाहनावार] [233 हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक-एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है? गौतम ! नैरयिक जीव असंख्यात हैं / प्रतिसमय एक-एक नैरयिक का अपहार किया जाय तो प्रसंख्यात उत्सपिणियां असंख्यात अवसर्पिणियां बीत जाने पर भी यह खाली नहीं हो सकते। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए / विवेचन-नारकजीवों की संख्या बताने के लिए असत्कल्पना के द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि प्रतिसमय एक-एक नारक का अपहार किया जाय तो असंख्यात उत्सपिणियां और असंख्यात अवसपिणियां बीतने पर उनका अपहार होता है। इस प्रकार का अपहार न तो कभी हुआ, न होता है और न होगा ही / यह केवल कल्पना मात्र है, जो नारक जीवों को संख्या बताने के लिए की गई है। अवगाहनाद्वार 86. [3] इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णता, तंजहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउविवया य / तस्थ बा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्य असंखेज्जइमागं उक्कोसेणं सत्त धणूई तिण्णि य रयणीओ छच्च अंगुलाई। तत्थ णं जे से उत्तरवेउदिवए से जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पण्णरस पणई अड्डाइज्जाओ रयणीओ। वोच्चाए, भवधारणिज्जे जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं उक्कोसेणं पण्णरस घणूई अड्डाइजाओ रयणीओ, उत्तरवेउब्विया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई एषकारयणी। सच्चाए, भवषारणिज्जे एक्कतीसं घणू एक्का रयणी, उत्तरवेउब्विया बाढि घण्इं दोण्णि रयणीओ। चउरपीए, भवधारणिज्जे बासह घणई दोणि य रयणीओ, उत्तरवेउब्विया पणवीसं घणुसयं / पंचमीए भवषारणिज्जे पणवीसं षणसयं, उत्तरवेउब्धिया अट्टाइज्जाई घणुसयाई। छट्ठीए मवषारणिज्जा अड्डाइज्जाई घणुसयाई, उत्तरवेउम्बिया पंच षणसयाई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org