________________ 212] जिीवाजीवाभिगमसूत्र हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के धनवातवलय का आकार कैसा कहा गया है ? गौतम ! वर्तुल और वलयाकार कहा गया है, क्योंकि वह इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधिवलय को चारों ओर से घेरकर रहा हुआ है / इसी तरह सातों पृथ्वियों के घनवातवलय का आकार जानना चाहिए। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तनुवातवलय का आकार कैसा कहा गया है ? गौतम ! वर्तुल और वलयाकार कहा गया है, क्योंकि वह घनवातवलय को चारों ओर से घेरकर रहा हुआ है / इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक के तनुवातवलय का आकार जानना चाहिए। हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी कितनी लम्बी-चौड़ी कही गई है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन लम्बी और चौड़ी तथा असंख्यात हजार योजन की परिधि (घेराव) वाली है। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी अन्त में और मध्य में सर्वत्र समान बाहल्य वाली कही गई है? हाँ, गौतम ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी अन्त में, मध्य में सर्वत्र समान बाहल्य वाली कही गई है। इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए। सर्व जीव-पुद्गलों का उत्पाद 77. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए सम्वजीवा उववण्णपुण्या ? सव्वजीवा उववण्णा? गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सव्वजीवा उववण्णपुरवा, नो चेव णं सध्वजीवा उपवण्णा / एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए / इमा णं भंते ! रयणप्पमा पुढवी सम्वजोवेहिं विजढपुवा सम्वजोवेहिविजढा ? गोयमा ! इमाणं रयणप्पभापुढवी सध्वजीहि विजढयुवा, नो चेव णं सध्वजीवविजढा। एवं जाद अधेसत्तमा / इमोसे णं भंते ! रयणपभाए पुढवीए सम्वपोग्गला पविठ्ठपुव्वा, सम्वपोग्गला पविट्ठा गोयमा ! इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए सम्वपोग्गला पविठ्ठपुव्वा, नो चेव णं सवपोग्गला पविट्ठा। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए। इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी सव्वपोग्गलेहि विजढपुव्या ? सव्वपोग्गला विजढा ? गोयमा ! इमा णं रयणप्पभापुढवी सम्वपोग्गलेहि विजढपुव्वा, नो चेव णं सध्यपोग्गलेहि विजढा। एवं जाव असत्तमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org